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________________ DISSET5RASICIS015 विधानुशासन HSDISTRI50150DRIST दिनेषु मासेषु च वत्सरेषु च श्रांति बालान् नियमन पूतनाः विधाय मंत्री कथितं बलि क्रम विमोचये ताः स दयोऽति नियाः ||२५७॥ यह पूतना ग्रही बालकों को दिन मास और वर्षों में नियम से पकड़ती है मंत्री को चाहिये कि इस क्रम से बलि देकर दयायान होकर उन निर्दयी पूतना से यालक को छुड़ाये। चैत्यालये ब्रह्म देवमंबिकां च यथा विधि संपूज्य शांतिं सर्वेषां ग्रहाणं लभते नरः |२५८॥ चैत्यालय में परम ब्रह्म सर्वदेव और अंबिका की विधि पुर्य पजन का सब नहों से शांति प्राप्ति करें। मांत्रिकैःस्वर्ण वस्त्राधेरऽर्चयद्भक्ति पूर्वक न सिद्धयति विधानेन कुत्रापि ग्रह मोक्षणं |२५९॥ फिर मांत्रिक (मंत्री) की सोने और यस्तादि से भक्ति पूर्वक पूजन करे अन्यथा किसी भी विधान से भी सिद्धि नहीं मिल सकती ग्रह से छुटकारा पाना तो नामुमकिन (असंभव) है इति विद्यानुवादोक्त बालग्रह चिकित्सा समाप्त: इति प्रथम खंड 卐卐卐卐卐卐y SECORDISTORTOISCI51065 ४९० PADICATESTOSTS2575555
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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