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SSIOT5215255015015 विधानुशासन DISO9525050HIOS
अथाऽपि ग्रंथाऽतरा द्वाल ग्रह चिकित्सा कटाते अब दूसरे ग्रंथों के अनुसार बाल मह चिकित्सा के विधान का वर्णन किया दाता है।
नमस्कत्य जिनस्य चरणं भोरुह द्वयं ग्रहणं
विकृतेः शांति वक्ष्ये बाल निरोधिनां श्री जिनेन्द्र भगयान के दोनों चरण कमलों को नमस्कार करके बालकों को हानि पहुंचाने वाले ग्रहों के विकार और उनकी शांति के उपायों का वर्णन करूंगा।
आरभ्य जन्म दिवसान् शिशो ईश दिनाऽयधिं ततो द्वादश मासांतमऽथ षोडशबत्सरात्
॥२॥
वर्ग त्रो भवे देवं दिन मासाऽब्द संख्यया दिन वर्ग प्रतिदिनं पथगेव वहि देवता
||३||
मास वग्गोंपि मासानां प्रत्येकं देवतोच्यते वगं संबत्सराणां च प्रत्यब्दे देवताऽभिधा
॥४॥ बालक के जन्म दिन से शुरू करके दसवें दिन तक फिर बारहवें मास के अंत तक और फिर सोलहवें वर्ष के अंत तक के दिम मास और बरसों की संख्या से तीन वर्ग होते है। इनमें दिन वर्ग में प्रत्येक दिन की देवी अलग अलग होती है, मास वर्ग में प्रत्येक मास की अलग अलग देवी होती है। और वर्ष में प्रत्येक वर्ष की अलग अलग देवी होती है।
देवता नामऽधेयानि ग्रस्तस्य विकतिःशिशोः
बलि कर्म विधिलंपो धूपो मंत्रश्च कथ्यते । उन देवियों के नाम पकड़े हुए बालक के विकार बलि कर्म की विधि लेप धूपो और उनके मंत्रों का वर्णन किया जायेगा।
जातस्य जन्म दियेसे कुमारं धनदेति तं ग्रसते नेच्छति स्तन्यं विधुन्वन्याद वर्षस:
शिशोरऽस्य विकारस्य कथ्यते च प्रतिक्रिया
माक्षिकं पुंमाजिष्टा हरिताल वहामपि SISTRISTRI5015235903525 ४९१ DISEDISEASEDDI505001