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________________ CASIOTISISTRIC2505 विधानुशासन VSTOISSISTSI501510 जो बुद्धिमान पुरुष इसप्रकार बलि और होम की विधि को करता है वह बालक की सह के रोगों और उपद्रयों से रक्षा करता है। अरोगमंऽग्रहाविष्टं स्वस्थ मप्यथ बालकं अमनैव विधानेन रक्षेदरक्षा पराटाणः ॥ २५१॥ रक्षा करने में पारंगत पुरुष बिना रोग और ग्रह से पीड़ित स्वस्थ बालक की भी विधान से रक्षा करें। संवत्सर बलिं दत्वा वक्ष्यमाण क्रमेण च मातृकाणां बलिं कुयान्मासे मासे विशेषताः ॥ २५२॥ आगे कहे हुए विधान से संवत्सर बलि देकर प्रत्येक मास में भी देवियों की भी बलि पृथक पृथक दें। तत्राऽपि दक्षिणादीनि देवपूजां च कारयेत् मुनींदानार्य का मुरख्या प्रतिकाऽपि भोजयेत् ॥२५३॥ और उनमें भी दक्षिण आदि दे और देवपूजा कराये तथा मुनिराजों आर्यिकाओं और प्रतियों श्रावक और श्रायिकाओं को भी भोजन कराये। संवत्सरे वले रंऽते होम तद् ग्रह निग्रहं सर्वशांति विधानेन सप्त रात्रं कियाद बुधः ॥ २५४ ॥ बुद्धिमान पुरुष संवत्दार बलि में अंतर्गहों का निग्रह सर्वशांति विधान रात तक करें। एवं कत बलिं बालं दूरात्परि हत्यमः शाकिन्यश्च ग्रहाश्चैव रोगाबहु विधि अपि ॥ २५५॥ जिस बालक के लिये इसप्रकार बलि दी जाती है उसको शाकिनी ग्रह और बहुत प्रकार के रोग दूर से ही छोड़ देते हैं। इति विद्यानुवादब्धि पुरादऽस्माभिरूद्धा ता श्लाघ्या बाल चिकित्सेऽयमऽबंध्य फलदर्शिनी ॥२५६॥ इसप्रकार विद्यानुयाद रूपी समुद्र से हमने यह आवश्यक फल को देने वाली यह बाल चिकित्सा विधान उद्धत की है। (नकल की है) STORISO1525105255 ४८९ PSPIRRISORTOISTORICIST
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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