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________________ SHS0150150150151015 विद्यानुशासन VS100501512151015015 (स्पर्शकराकर) पूर्व कथित क्रम से विधिपूर्वक मृत्युजय मंत्र से होम करके बालक को रक्षा करे। दक्षिण क्रम आचार्य बलि होमांते विदध्या लब्ध दक्षिणं दक्षिणा रहिता होमा वलय च न सिद्धिदा ॥२४५॥ फलेन बलि होमानां जनं यस्मात्फलार्थिनां यो कुर्यादक्षिणादति स्तस्मात्तां दक्षिणां विदु ॥२४६ ।। फिर होम के पश्चात आचार्य बलि पर दक्षिणा ले लेये क्योंकि बिना दक्षिणा के होम और बलि कोई सिद्धि नहीं देते। पुरुष बलि और होम के फल से मुख्य फल के वास्ते जो दक्षिण अर्थात् देने की क्रिया करता है अतएव उसको दक्षिण कहते हैं। उत्तमा दक्षिणा निष्क तदऽद्धा मध्यमा मता तद् अर्द्धम ऽधमा प्रोक्ता तथा तासां फलान्यऽपि षोडश पलानां एक निष्क सुवर्ण दद्यात् ॥२४७ ॥ एक निष्क (एक कर्ष या दो तोले) सोने की मोहर को निष्क कहते हैं एक दीनार की दक्षिणा उत्तम उसकी आधी मध्यम और उसकी आधी अधम दक्षिण कहलाती है।तथा उनके फल भी वैसे ही उत्तम मध्यम और अधम होते हैं। स्नपनं शांतिनाथस्य बलौ होमं च कार्येत् ततो देविं कुष्मांडी रक्त वस्त्रादिभि र्यजेत् ॥ २४८॥ चतुर्विशत् ऋषीणां च दद्याता हार मादरात सांतीनां श्रावकानां च श्राविकानां च शक्ति : ||२४९ ॥ इसके पश्चात शांतिनाथ स्वामी का अभिषेक होम करें पश्चात कुष्मांडी देवी का लाल वस्त्रादि से पूजन करें। फिर चौबीस ऋषियों आर्यिकाओं श्रावक और श्रावकाओं को आदर से आहार अपनी शक्ति के अनुसार दें। एवं यः कुरुते धीमान् बलि होम विधि नरः स रक्षति शिशु यत्नाद् ग्रह रोगाद् उपद्रवान् ॥ २५०।। CASTOTSIDASTISTICSIRIDIOSE ४८८ 150150SIRIDIOSISTERIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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