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________________ 959595952 विधानुशासन 9595969595195 बलिदान के लिये प्रशंसनीय ब्रह्मचर्य और व्रतों को आभूषणों से विभूषित लोभ रहित सह धर्मियों से प्रेम करने वाला धीर दयावान सम्यग्दृष्टि पुरुष । प्राग मुखस्य समासीन स्योत्तराश मुरवस्थच बालस्योपरिमंत्रेण सराव बलिं ततः ॥ २३९ ॥ पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठे हुवे बालक के ऊपर मंत्र से बलि की तीन बार उतारा करे । दास्यामि त्वद्वलिं हे देवि मुंचे नं चे ति तद्भुति निद्दिष्टयां ग्रहामे एति संबोध्याति प्रयत्नधी सन्मार्जिते च भू भागे सर्वमंगल भूषिते नय वस्त्र परिने बलिं पात्रे निवेशेयेत् ॥ २४० ॥ ॥ २४१ ॥ हे देवी मैं तुझको बलि दूँगा तु उस बालक को छोड़ दे बुद्धिमान मंत्री इसप्रकार देवी को संबोधन करके कहे और निश्चित की हुई पृथ्वी पर जो शुद्ध और साफ की हुई हो सब मंगलीक द्रव्यों से सजी हुयी है वहां पर उस बलि को जो नये कपड़े से ढ़की हुई हो रख दें। तत्रादाय बलिं द्रव्यं गंधाधैरच्चयत् क्रमात् प्रच्छाद्य नव वस्त्रेण तं बलिं गमयेद्बहिः ।। २४२ ॥ पहिले वहां पर बलि के द्रव्य को लाकर गंध आदि से क्रमपूर्वक पूजा कर और फिर उस बलि को नये कपड़े से ढ़ककर बाहर चले जायें। पश्चादाचम्य शुद्ध सन पृथक पात्रके निवेशितं सौवीरं च जलं हस्ते मंत्रयित्वा पृथक पृथक ॥ २४३ ॥ तैः प्रजावय वा स्पृष्टाया रक्षां कुर्याद् विचक्षणः होमं मृत्युंजयं चाऽत्र पूर्व भोक्तं यथा विधिं ॥ २४४ ॥ मंत्री फिर आचरण से शुद्ध होकर अलग अलग बर्तन में रखे हुवे सौ वीर (कांजी बेर) और जल को हाथ में लेकर उनपर अलग अलग मंत्र पढ़े, फिर उनसे बालक के अंगों के छुआकर एक ४८७ 95959595955
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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