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________________ でらでらでらでらたん faengkata Y5たらどらどらですぐり पायसान्नं च कुल्माषं दया कृशमे वच गुडं घृतं गंधादि कदल्यादि फलैर्युतैः पूर्वस्यां दिशि मध्यान्हे निंदध्य त्सप्तरात्रकं धूपरोन्मेष श्रृंगेण स्नापये त्पंच पल्लवैः ॥ २३४ ॥ गंधोदकैः समंत्रण सर्वरोगान् विनाशयेत् एवं कृते प्रयत्नेन सर्वशांति भवेत्यलं ॐ नमो भगवति रौरवी इम बलि गृह गृह बालकं मुंच मुंच कुमारिकायै स्वाहा । सोलहवें वर्ष में बालक को रौखी नाम की ग्रही के पकड़ने पर बुखार घबराहट शोध (सुकने का रोग) और बहुत प्रकार के विकार होते हैं। खीर का अन्न, कुलथी, खिचड़ी, गुड़, घी, दही, चंदन, केले आदि फलों से युक्त बलि को पूर्व दिशा में दोपहर में सात दिन रखे भेड़ के सींग को दूप दें । और पाँचों पत्तों के पकाये हुए जल से स्नान करायें। और गंधोदक को अभिमंत्रित करके लगाने से सर्वरोग नष्ट होते है तथा ऐसे प्रयत्न करने पर सब प्रकार की शांति होती है। ॥ २३२ ॥ एवं बाल ग्रहावेशे दिन मासाऽब्द गोचरे यानि यान्युदिताऽन्यत्र चिन्हा वन्येषामऽशेषतः ॥ २३५ ॥ इसप्रकार बाल को पर ग्रह का प्रकोप आने पर दिन महिने और वर्षो में जो जो चिन्ह होते है वह सब यहाँ पर कह दिया है। स्नातः प्रसन्न वस्त्राभ्यां परिधानोत्तरीय युक मांगुलीय शुद्ध स्सन सकली कृत विग्रहः ॥ २३३ ॥ अभावेऽप्यऽन्यथा भावे यथा कालं यथोदितं बलिं कर्म तथा कुर्यात् दुर्ज्ञानं हिग्रहेहितं ॥ २३६ ॥ यदि वह चिन्ह नहीं हो या अन्य प्रकार से होवे तो भी काल के अनुसार बलि कर्म को करे क्योंकि ग्रहों का ज्ञान अत्यंत कठिन है। बलिदान प्रशस्तांगो व्रत शील विभूषणः अलुब्धो वत्सल धीरः सम्यग्दृष्टि दयार्द्र घीः ॥ २३७॥ स्नान करके उज्जवल धोत्ति और दुपट्टा पहिन कर सोने की अंगूठी धारण किये हुए सकली करण क्रिया को करें। PSP/SPSS ॥ २३८ ॥ 52525 --- P5252525050505.
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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