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________________ CHSRISO151015015105 विधानुशासन V50505IOSITISIOS त्रियो दशाऽब्द संजातं गन्हीते कामुका ग्रही तदा ज्वरोति शूलश्च रोदनं दारूणं भवेत् ||२१९॥ पतेनाभ्यंजनं सर्पि पानं चापि प्रयोजयेत् पायसं तिल चूर्ण च दधि कुल्माष मिश्रितं ॥२२०॥ शालि भक्त च गंधादि संयुतं मंत्रपूर्वकं मध्यान्हे तु बलिं दद्यात्त श्मशाने सप्त रात्रक ॥२२१ ।।. गुड सिद्धार्थ लसून धूपनं च प्रयोजयेत् एवं कृते प्रयत्नेन बालं मुचिंति साग्रही ||२२२॥ ॐ नमो भगवति कामुकाये काम व्यासनि विसौम्य विलासिनी छिंद छिंद मुख मंडिते कह कह हन हन यट शीशे विरल विरल दंतिनि आकाश रेवति भज भज स्वाहा। तेरहवें वर्ष में बालक को कामुका नाम की ग्राही के पकड़ने पर बुखार और बहुत दर्द होता है। तथा बालक भयंकर रूप से रोता है उस समय घी से मालिश करे तथा घी पिलावे तथा खीर तिलों का चूर्ण दही कुलथी मिलाकर चावल का भोजन और गंध आदि की बलि को मंत्रपूर्वक दोपहर के समय श्मशान में सात रात तक दें। तथा बालक को गुड़ सफेद सरसों लहसून की धूप भी दें इसप्रकार प्रयत्न करने पर बह ग्रही बालक को छोड़ देती है। चतुर्दशाब्दजातं तं गन्हीते भैरवी तथा ज्वरश्च पूति वळत्यं भूमौ च परिवर्तनं ॥ २२३॥ उर्द्ध वासः प्रकंप श्री द्विग्न त्वं रूधिराभंव सर्वमेव यदि भवेद साध्यं त्वं ऽन्यथा क्रिया ॥२२४॥ कसरं क्षीरमऽन्नं च गंध पुष्प बलिं क्रमात पूर्वस्यां दिशि मध्यान्हें सप्त रात्रे निधापयेत् ॥ २२५॥ पंचकेन्पल्लवैः स्नाया तगरं येणु चर्म च गज दंतं च संहत्य धूपनेन तत् प्रशाम्यति ॥२२६ ।। CHODISCISIODICISESSIPAHI ४८४ PASTOTRICTARTICISIRIDICIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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