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________________ CSRISP5950015015 विधानुशासन 350015015015251315 पायसं त्रिविध' भक्ति यथिका मधुमेवच बलिंऽभिक्षु रसं दद्यात्संध्यायां सप्तरात्रिकं ॥२१३॥ वचालशन सिद्धार्थ तगरै धुपये च्च तत पत्र भंगेन से स्नायात् ततो मुंचति साग्रही ॥२१४॥ ॐनमो भगवति श्रुणुकोकिलायै बालक वाधन प्रिटाटौ सर्व प्राणी प्रमोहनारी इमं बलिं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। ग्यारहवें वर्ष में बालक को श्रुण कोकिला नाम की ग्रही के पकड़ने पर खांसी आंख का रोग हो जाता है और बालक कौवे के समान शब्द करने लगता है। इसके लिये खीर तीन प्रकार का भोजन थिका जूही और महुये और ईख के रस की बलिं को सायंकाल के समय सात रात तक दें। फिर बालक को वघ, लहसून सफेद सरसों तगर की धूप दें।और पत्र भंग जल से स्नान करावे। तय यही उस बालक को छोड़ देती है। द्वादशाब्द ययस्थं तं गन्हीते निर्द्धना ग्रही दंत संघट्टन काश्य मुरव शोषं मूर्द्ध कंपनं ॥२१५॥ रक्त पुष्पं सितऽक्षिं च तदा तस्य भवंतिहि उदनं पयसा युक्तं गुडेन चंदुनं तथा ॥२१६॥ कुल्माषं तिल चूर्ण च गंध पुष्प समन्वितं सायमुत्तरतो न्यसेत बलिं सप्त दिन कमात् १२१७॥ अश्वत्येन समायुक्त पत्र भंगेन सिंचयेत् धूपये निंब सिद्धार्थ तगरैः सापि मुंचति ॥२१८॥ ॐ नमो भगवति निर्द्धनि वाम रूप धारिणी धम धम धामय धामय एहि एहि इस बालकं मुंच मुंच बलिं गन्ह गृह स्वाहा। बारहवें वर्ष में बालक को निर्द्धना नाम की नहीं के पकड़ने पर बालक दांत पीसता है, दुबला हो जाता है। उसका मुख सूखने लगता है और सिर हिलाने लगता है। उसकी आँखे पहिले लाल होकर पुष्प (फूल) पड़ जाता है, फिर आंखे सफेद हो जाती हैं। उसके लिये दूध गुड़ चंदन कुलथी तिलो का चूर्ण गंध और पुष्प की बलिं को सायंकाल के समय उत्तर दिशा में क्रम से सात दिन तक दें। फिर बालक को पीपल सहित पत्रं भंग जल से स्नान करावे और नीम सफेद सरसों तथा तगर से धूप दें। तब यह गाही बालक को छोड़ देती है। 85015015105PISIO751015 ४८३ PISTO15015015015015TOSS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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