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________________ CISIOSSIPISIOX5125555 विद्यानुशासन USD55055OTSITORS दश वर्ष जातं बालं चंडी गन्हान्ति देवता तदानीं वहु सो मूत्रं क्रोधः कंपो ज्वर स्तदा ||२०४॥ अक्षिरोग स्तथा भ्रांति भोजन स्याऽल्पता महत् पानं च धावनं नित्यं गानं निष्टर भाषणं ||२०५॥ याभि यामीति वतनं हसनं च भवेत् तदा पायसं गव्यं सपिश्चदधि लज्जे समान्वितम ॥२०६॥ आपूपं धान्यकं चापि कुमुंदं करवीर कं गंधादि संयुतं सायं न्यसेत् उत्तरतो बलिं ॥२०७॥ ससाधा कुर्यात् जिज पूजाश्च भक्तितः ऋषीणां भोजनं चापिदु श्चिकित्साहि सा पुतः It२०८॥ गुग्गुलं तगरं कुठं नरवं चाऽपि प्रधूपयेत् स्नापटोत्पत्र भंगेन ततो मुंचति साग्रही। ॥२०९॥ ॐ नमो भगवित चंडी रावण पूजिते दीर्य केशि पिंगलाक्षि लंबस्तनि शुष्क गात्रे प्रजा पीडन परे एहि एहि आवेशय आवेशय ही ही क्रौं क्रौं इमं बलिं गन्ह ग्रन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। दसवें वर्ष यालक को चंडी ग्रही के पकड़ने पर बालक के बहुत मूत्र क्रोध कंप ज्वर आंखों का रोग भम भोजन का क्रम खाना पानी बहुत पीना दौड़ना सदा गाते रहना और निष्ठरता से बात करना आदि रोग हो जाते हैं। मिन-मिन करके बोलना कभी-कभी हंसती भी है। तब उसके लिए खीर गाय का घृत दही, और लाजा (धान की खील) पूर्व चावल का अनाज, सफेद कमल और कनेर के फूल धूप फूल माला सहित सायंकाल के समय उत्तरादि शामे बलि मंत्र सहित दें। और इसीप्रकार सात रात तक करता हुआ भक्ति सहित जिनेन्द्र देयपूजा और मुनियों को भोजन कराता हुआ चिकित्सा करें। गूगल तगर कूढ़ और व्याघ्र के नाखूनों को धूप दे। और पत्र भंग जल से स्नान कराये तब यह ग्रही बालक को छोड़ देती है। एकादश समाजातं गन्हीत श्रुण कोकिला तदा का साक्षि रोगश्च काक रावश्च जायते ॥ २१२॥ CASIOIDIOTICISIOISIO5CTE ४८२ PISTRISTRISTRIESSETTES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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