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पंचपल्लव पंकांबु स्नानं चापि प्रयोजयेत्
॥ १९९ ॥
एवं कृत प्रयत्नेन स्वस्थो भवति बालकः ॐ नमो भगवति राक्षसी कुमारी वेशिनी छिंद छिंद भिंद भिंद मुख मंडिते कह कह हन हन पुश्चलि विरल दंति आकाश रेवति भज भज स्वाहा ।
आठवें वर्ष में बालक को राक्षसी नाम की ग्रही पकड़ने पर बालक रोता है, गरजता है और बहुत इरता है। उसके लिये खीर- खिचड़ी पाँचों प्रकार के भोजन, घी, कुलथी, उड़द का चूर्ण, धूप और गंध आदि सहित मंत्र जपते हुए । बलि को अर्द्धरात्री में सात दिन तक दें, सर्प कांचली निगंडी (सेंभल) पिच्छला ( मोर पंखा ) और लहसून की धूप दें। पाँचों पत्तों के पके हुये जल से स्नान करावे इसप्रकार प्रयत्न करने पर बालक स्वस्थ हो जाता है।
गुड संयुक्त पयसा तिल सिद्धार्थ मिश्रितैः क्षीर वृक्ष समिद्धिश्च मंजेज होग
ॐ मुंच मुंच एहि एहि जय जय आगच्छ आगच्छ बालिके स्वाहा ।
गुड में मिले हुए जल दूध तिल और सफेद सरसों को उपरोक्त मंत्र से मंत्रित करके दूध वाले वृक्षों की समिधाओं से होम करें।
नव संवत्सरे जातं शरसाला नामिका ग्रही तदा ज्वरोऽतिसारश्च काइयं चारिप भवेन्महत् चतुर्विद्य चरु भाषा पूपं दधि समन्वितं गंध पुष्पादि संयुक्तं सप्तं रात्रं समंत्रकं
॥ २०० ॥
सायमुत्तर काष्टायां बलिं दद्यात् विचक्षणः बिल्वाऽरिष्टक पत्राभ्यां पक्कांबु स्नान में एवच
॥ २०१ ॥
॥ २०२ ॥
॥ २०३ ॥
वचा सिद्धार्थ लसुनै कल्कैनापि प्रलेपयेत् गजदंत न केशं मेष श्रृंग च धूपयेत् ॐ नमो भगवति रुधिर वेशिनि शरशाला विशालिनि छिंद छिंद मुख मंडिते कह कह हन हन घट शीशे विरल दतिनि आकाश रेवति भज भज स्वाहा ।
वर्ष में बालक को शरशाला नाम की ग्रही के पकड़ने पर ज्वर अतिसार और बड़ी श्वास खांसी का कष्ट होता है। उसके लिये चार प्रकार की नैवेद्य उड़द के पुवे दही के साथ गंध पुष्पमाला आदिग की बलि को मंत्र पूर्वक सात रात तक बुद्धिमान सायंकाल के समय उत्तर दिशा में बलि दें। तथा बिल्व और अरीठे के पत्तों के पके हुवे चल से स्नान करें । वच और सफेद सरसों लहसून के कल्क
का लेप करें तथा बालकके हाथी दांत मनुष्य के बाल और भेड़ के सींग की धूप दें।
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