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________________ विद्याभुशासन 55 पंच एवं कृते प्रयत्नेन ततो मुंचति साग्रही पल्लव पक्वांबु स्नानं चापि प्रयोजयेत् स्नपनं शांतिनाथस्य विधि पूर्वेण कारयेत् O5PSP5959 つわりです ॥ १८२ ॥ ॐ नमो भगवति शोभी नाम देशिनी भिंद भिंद मुख मंडित कह कह हन हन घट शीशे विरल दंतिनी आकाश देविते भज भज स्वाहा । तीसरे वर्ष में बालक को सांमी नाम की ग्रहां के पकड़ने पर बालक को आंखो से दिखलाई नहीं देता है। इसके सब अंग दुखने लगते हैं। उसको बुखार और दस्त होने लगते हैं । उसका बाँया हाय कांपने लगता है । उसको भोजन भी अच्छा नहीं लगता है। उसके लिये भात, खीर, दही, खिचड़ी कुलथी, उड़द का चूर्ण, गंध फूल और दीपक की बलि को पूर्व दिशा में सायंकाल के समय में सात रात तक दें और यच, लहसून, सर्प-कांचली, बकरी के बालों की धूप दें। पाँचों पत्तों के पके हुवे जल से स्नान करावे और भगवान शांतिनाथजी का विधिपूर्वक अभिषेक करावे । चतुवत्सरिकं बालं गृहीते चंचला ग्रही तया गृहीत मात्रस्तु ज्वरेण परिपीडयतेः आमोटयति गात्राणि त्रसते च पुनः पुनः पंच वर्ण चरुं तद्वत गंधमाल्य प्रदीपकान् ॥ १८३ ॥ ॥ ९८४ ॥ सप्तरात्रं बलि दद्यात्त सायं पूर्व दिशि क्रमात् धूपयेन्मेषचंगन गोदंतेन नखेन वा स्नापयेत्पंचगव्येन ततो मुंचति साग्रही ॐ नमो भगवति चंचले मोहसिन कह कह हन हन घट शीशे विरल दंतिनि आकाश रेवति भज भज स्वाहा ॥ ॥ १८५ ॥ चौथे वर्ष में बालक को चंचला नाम की ग्रही के पकड़ने पर बालक को बुखार आ जाता है। उसका शरीर सूज जाता है। बालक बार बार कष्ट पाने लगता है। उसके लिये पाँचो रंगो का भोजन नैवेद्य और उसी तरह की फूल माला और दीपक की बलि को सायंकाल के समय पूर्व दिशा में सात रात तक दें। और भेंड के सींग गाय के दांत या नाखूनों की धूप दें और गाय, घी, दूध, दही, गोबर तथआ मूत्र (पंच गव्य) से बालक को स्नान करायें। तब यह ग्रही उसे छोड़ देती है। पंचवत्सरं बालं च दाहेष्याश्रयते गृही तया गृहीत मात्रेण चक्षु यि नैव पश्यति ◎すすめですらたちでらでらでらでらでらでら 11868 11
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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