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________________ CHOIDESIRSCIROIDOS विधाकुशासन HSCSIDISTRISADISCESS सौदंति सर्व गात्राणि मुरयं च परिसुष्यति ज्वर स्तथाऽतिसार श्च तदानीं भवति धुवं ॥१८७॥ उदनं पायसं चैव कसरं च गुंडोदनं कुल्माषं च दधिज्माज्यं पंच भक्ष समन्वितं ।।१८८॥ सप्त रात्रं बलिं दद्यात् उत्तरस्यां दिशि क्रमात् लसुनं सित सिद्धार्थ नर केशेन धूपयेत् एवं कते प्रयत्नेन ततो मुंचति साग्रही ॥१८९॥ ॐ नमो भगवति दाहेष्टि कुमारि दाशिनि छिंद छिंद मुख मंहिते कह कह हन हन घट शीसे विरल दंतिनि आकाश रेवति भज भज स्वाहा। पाँचवें वर्ष में बालक को दाहेष्टी नाम की ग्रही पकड़ती है उसके पकड़ने मात्र से बालक को आँखो से नहीं दिखता है। उसके सब अंग दुखने लगते हैं । मुख सूख जाता है। और उसको ज्वर और दस्त निश्चयपूर्वक आने लगते हैं। उसके लिये भात खीर खिचड़ी तथा गुड़ का भोजन कुलयी दही, घृत और पाँचों प्रकार के भोजन को सात रात तक उत्तर दिशा में बलि मंल पूर्वक दें तथा लहसून सफेद सरसों और आदमी के बालों की धूप दें, इसप्रकार प्रयत्न करने पर वह यही बालक को छोड़ देता है। षद सांवत्सरिकं बाल गन्हीते स्वैनिका ग्रही तया गहीत मात्रस्तु दारुणं रोदिति धुवं ॥१९ ॥ आकाशं च निरीक्ष्यते यामि यामीकि भाषसे ज्वर रोगाति सारश्च जायते नात्र संशयः ॥१९ ॥ उदनं पायसं चैवं दया कसर मे एव च पूरिका धारिका चैव तथा गंधादि संयुतं ॥१९२॥ सप्त रात्रं बलिं दद्यात उत्तर स्यां दिशि क्रमात् धूपटोत्मेष अंगेन गोदंतेन नरवेनवा स्नापटोन्त्र भंगेन ततो मुंचति साग्रही ॥१९३॥ Cಡಐಟಡದ x9gYgENSFಡಗಳ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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