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________________ 050151275015015125 विद्यानुशासन 510550150ISTRIES इति बारह मास बलि विधानं द्विवर्ष जातं गृहीते रक्त कंठी ग्रही धुवं तदा रक्तऽतिसारं श्च ज्वरोऽप्यरूण मूर्तिका ॥१७५॥ रक्तता नेत्रयो हासो सत्कद गात्रस्य पूतना पायसं शुद्ध भक्तं च कुल्माषं शर्करा दधि ॥१७६॥ का पकं गाय भूप दीगो स मन्तितं पिष्ट वकं च पूर्वस्यां दिशि सप्तं दिनं हरेत् ॥१७७॥ लसुनं सर्प निम्मोंक सिंदूरैश्च प्रधूपनं निंब विल्वज पनांबु स्नानं चंदन लेपन स्नपनं शांतिनाथस्ट विधि पूर्वेण कारयेत् ॥१७८॥ ॐ नमो भगवति रक्त कंठी कुमार वेगिनी भिंद भिंद मुरव मंहिते कह कह हन हन वर्ष तुंदरसे विरल दंतिनि आकाश देवते भज भज स्वाहा। दूसरे वर्ष में बालक को रक्तकंठी नाम की ग्रही पकड़ने पर खून के दस्त बुखार शरीर में लाली, दोनों आंखो में ललाई (लाल रंग) हंसी और कभी कभी शरीर में सफेद हो जाती है। उसके लिये नीर शुद्ध भोजन कुलती शकर और दही खिचड़ी पके हुए उड़द, धूप, दीपक और पिसे हुए पापड़ की बलि को पूर्व दिशा में सात दिन तक मंत्र पूर्वक दें। लहसून सर्प कांबली और सिंदूर से धूप दें। नीम और बील के पत्तों से पकाये हुये जल से स्नान करावें. और चंदन का लेप करें। भगवान शांतिजी का विधिपूर्वक अभिषेक करे। त्रिवर्ष जातं गन्हीते सोमीनाम ग्रही धुर्व तया ग्रहीतमात्रस्तु चक्षुभ्यांतु न पश्याति ॥१७९॥ सीदति सर्व गात्राणि ज्यराति सारवान् भवेत् कंपेत् वाम हस्तश्च भोजनं च न रोचति ॥१८॥ पूर्वस्यां दिशि सायान्हे सप्त रात्रं बलिं हरेत् वचा लसुन सर्पत्वग जा केशैश्च धूपयेत् ॥१८१॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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