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SSTRICISCISIOI505 विधानुशासन HERISTOTRICISCISION
अर्थ शोडष वर्ष रक्षा
दिने दिने बलिं कुर्वते मंगल स्नानवा त्रिंक दत्वा बलिं ततो होमं विदधीत यथा विधि:
॥१६८॥ इसप्रकार प्रतिदिन बलि देता हुआ मंगल स्नान करके (नित्य घर में स्नान करने की गृह स्नान कहते है) ग्रहण श्रावणी आदि स्नान को नैमितिक स्नान तथा विधानादि वियाहादि संस्कारों के समय स्नान को मंगल स्नान तथा अन्य पापों से शुद्ध होने के समय स्नान को प्रायश्चेति स्नान कहते हैं) अथवा मुँह हाथ धोकर बलिं देकर विधि पूर्वत होम करें।
बलिं होम विधाननांते देवपूजा यथा विधि कारयित्वा यथा सम्यगाचार्य मऽमपि पूजयेत् ॥ १६९ ॥
अनुमानं च तांबूल क्षोमादिवसनेन च चंदनाद्यऽर्चनागेन तत्तन्मासे हिकारटोत्
॥१७०॥
।।१७१ ॥
विधिना भोजये न्नित्यं पूर्वोक्तां श्च तपस्विनः मासे मासे कृते येषु सर्वशांति भविष्यति पंच पल्लव नीरेन स्नपनं च तत्तः शिशो बामणेऽप्य बिकाद्याश्च पूजा पूर्वातित्क्रमात
॥१७२॥
आचार्य पूजयेत्पश्चात् यस्त्रायैः सर्ववस्तुभिः अनेन बलिनात् तुष्टा शिशुत्यजति चापला
॥ १७३ ।।
इत्यं निगदिताः सर्व बलयो मास गोचराः अथोच्यते द्वितीयादि संबत्सर बलि कमः
॥१७४॥ बलि और होम के विधान के अंत में विधि पूर्वक देवपूजा करके भलीप्रकार आचार्य का भी पूजन करें। उसका पान और रेशमी वस्त्रों से सत्कार करके चंदन आदि से प्रत्येक मास में पूजन करे विधिपूर्वक नित्य मुनिराजों व तपस्वियों को भोजन करावें इसप्रकार प्रतिमास करने से सर्वशांति हो जायेगी। फिर बालक को पांच पत्तों के पकाये हुये जल से स्नान करावे तथा पूर्योक्रम से देव देवियों का पूजन करें। इसके पश्यात वस्त्र आदि सब यस्तुओं से आचार्य की पूजा करे तथा बलि से संतुष्ट हुई चपला ग्रही बालक को छोड़ देती है। इसप्रकार सब महिनों की बलि का विधान कहा है तथा आगे दूसरे वर्ष से शुरु करके वर्षों की बलि विधान को क्रम पूर्वक कहा जायेगा।
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