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SSIOISIOTHRISTRATI25 विद्यानुशासन 1501512152510151215
ग्यारहवें मास की रक्षा
बालमेका दस मासे वंधु मुख्या विशेत तदा मोहो ज्वराति साहश्च रोदनं च भवेन्मुहः
॥१६२ ॥
भक्तं गंध समायुक्तं दधि पायस परिकां गंधं पुष्पादि प्रदीपादि सोभितं स हिरण्यकं
॥१६३॥
पूर्व द्वारे बलिं न्यसेत् मध्यान्हे दिन सप्तकं शुद्धो ध्यान परोमंतकी ततो मुंचति साग्रही
॥१६४॥ ॐनमोभगवति वंधुमुरव्ये वज्रधारिणी पीतभूषण प्रिये एहि एहि आवेशय आवेशय
ह्रीं ह्रीं क्रौं कौं इमं बालं रक्ष रक्ष त्वदलिं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। ग्यारवें दिन मास में बालकको बंधु मुक्या ग्रही के पकड़ने से पर मोह ज्वर और दस्त होते हैं, और वह बार बार रोता है। उसके लिए गंध सहित भोजन दही खीर पुरू धूप दीपक आदि से शोभित सोने सहित बलि को दोपरहर के समय पूर्व दरवाजे पर शुद्ध ध्यान में लगा हुआ मंत्री सात दिन तक मंत्र को जपते हुए तब वह ग्रही बालक को छोड़ देती है।
बारहवें मास
बालकं द्वादशे मासे गृहीते चपला ग्रही प्रस्थति स्पश्यति प्रायो वालो मुंचति च धुवं
।।१६५॥
स्वेतानं दधि कुल्माष तिल चूर्ण समंत्रकं पूर्वस्यां दिशि मध्यान्हे बलिं सप्तं दिनं न्यसेत्
॥१६६॥
पंच पल्लव पक्कांबु स्नपनं स्वेत सर्षपं गुग्गुलं लसुनं चाऽपि धूपटो त्साऽमपि मुंचति
॥१६७॥ ॐ नमो भगवति चपले इटि मिटि पुल्लिंदिजिएहि एहि आवेशय आवेशय हीं हीं क्रौं
कौं इमं बालं रक्ष रक्ष त्वदलिं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। बारहवें मास में बालक को चपला नाम की ग्रही के पकड़ने पर वह अत्यंत दुख पाता है प्राय चिपटने लगता है फिर छोड़ देती है। उसके लिये श्वेत अन्न (चावल) दही कुलथी तिल के चूर्ण की बलि को मंत्र सगित पूर्व दिशा में दोपहर में सात दिन तक रखे पांचो पत्तों के पके हाए जल में स्नान करायें और सफेद सरसों गुगल और लहसून की धूप दें। तब वह ग्रही बालक को छोड़ देती है।
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