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________________ 959595951 विधानुशासन 95959595‍ गंध पुष्पादि संयुक्तं बलिं मंत्रेण मंत्रवित् न्यसेत्सप्तदिनं सायं ततो मुंचाति साग्रही ॥ १५७ ॥ ॐ नमो भगवीत समुद्रिके वज्रधारिणी पीत वर्ण भूषण प्रिये एहि एहि आवेशय आवेशय ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रौं इमं बालं रक्ष रक्ष त्वद्वलिं गृह गृह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। नवे मास में बालक को सामुद्रिका गृही के पकड़ने पर बालक निष्टरता से रोती है। उसके शरीर में पाटली (पांटूफली) की जैसी गंध आती है। वह दूध नहीं पीता उसको उलटी और ज्वर होने लगता है, रंग फीका हो जाता है, उसको बार बार पेशाब होने लगता है तब उसको यह बलि दे । नैवेद्य खीर का भोजन कुलथी धान का सत्तू, उड़द के पूर्व और दही को क्रम से लेकर पश्चिम दिशा गंध और फूल आदि सहित मंत्रपूर्वक बलि दें। इसप्रकार सायंकाल के समय सात दिन तक बलि रखने से वह ग्रही बालक को छोड़ देती है। दसवें मास की रक्षा बालकं दशमे मासे गृन्हीते सुकला ग्रही ततोद्वेजनमायं च स्तन द्वेषश्च जायते उदनं पायसं दधिशक्तु समन्वितं पंच भक्षं तथा पक्क माष मिक्षुरसं तथा पिष्टस्य विकृतान् मेरी माणि चक्र ध्वजानऽपि तैल दीपं पंच गंधादि चोत्तरस्यां दिशि क्रमात् ॥ १५८ ॥ ॥ १५९ ॥ ॥ १६० ॥ सप्तरात्रं तु देशा तन्मंत्रवादी समंत्रकं एवं कृते प्रयत्नेन ततो मुंचति साग्रही ॥ १६१ ॥ ॐ नमो भगवति सुकलेगदायुध धारिणी मुक्ता भूषण प्रिये एहि एहि आवेशय आवेशय ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रौं इमं बालं रक्ष रक्ष त्वद्वलिं गृह गृन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा । दसवें मास में बालक को सुकला नाम की यही के पकड़ने पर घबराहट आदि हो जाती है और स्तन का दूध लेने से द्वेष करता है। उससमय भात, खीर, दही और सत्तू पाँचों प्रकार के भोजन और पके हुए उड़द गन्ने का रस तथा इसको पीसकर मेरी मणि चक्र ध्वजादि तेल का दीपक और पाँचों तरह की सुगंध आदि सहित उत्तर दिशा की तरफ सात रात तक बराबर मंत्रपूर्वक मंत्रवादी बलि दें इसप्रकार प्रयत्न करने से यह ग्रही बालक को छोड़ देती है। やすでにおか 95950६ ४७४ SSP ってちゃらです
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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