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________________ S5I050510151055105 विधानुशासन PARADISIOSITISSISTRIES आठवें मास अष्टमास वयस्यं तं गृहीते वन यासिका मोहश्च सर्षपा काराः स्फोटा मात्रे भवंति च ॥१५॥ ॥१५१|| कंपनं याम हस्तस्य मुरव शोषश्च जायते प्राथाशो जीवनं तस्य तद्याप्टोऽवं बलिं हरेत् चरुक स्तिल चूर्णं च सा पूपं स पतं सं ईक्षोशूर्ण मादाय शीघ्र मुत्तर तो दिशि ॥१५२॥ सप्तं रात्रं बलिं दद्यान्मत्रे णैव सधूपत: एवं पात प्रकरणेज मतो यति साग्रह ||१५३॥ ॐ नमो भगवति वनवासिके एहि एहि ही ह्रीं कौं क्रौं आवेशय आवेशय इमं बाल रक्ष रक्षा त्वदलिं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। आठवें मास में बालक को यनवासिका देवी के पकड़ने पर शरीर में सरसों के बारबर दाने से फूट आते हैं। बायाँ हाथ काँपने लगता है, मुख्य सूखने लगता है, उसका जीवन संकट में पड़ जाता है उसके लिये यह बलि दे। नैवेद्य तिलों का चूर्ण पूए घृत ईख का रस और चूर्ण को लेकर उत्तर दिशा में मंत्र पूर्वक धूप सहित बलि दे। इसप्रकार सात रात करने पर यह ग्रही बालक को छोड़ देती है। नवें मास नव मास वयस्थं तं गन्हीते ऽथ समुद्रिका तदा निष्टर रोदश पाटली गंध संभवः ॥१५४॥ क्षीर पानांतंरा छदिज्वर रोगो विवर्णता प्रश्रावश्च भवे तस्य तदा दधाति इयं बलिं ॥१५५॥ चरुकं पायसाउन्नं च कुलमापं धान शक्तु मत् माष पूपं च स दधि पश्चिमायां दिशि कमात् ॥१५६॥ STORISEASICS505510551065४७३ PASCISTOSTSSIOTECISION
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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