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STERIODESIRETRIES विद्यानुशासन ASPIRCTRICISTRIETIES
रसमिक्षच मृद्धीका धूप स्तैलेन लिपनं पिटेन प्रतिमा कृत्वा सर्वमुत्तर तो दिशि सायंकाले क्षिपे दै सप्त रात्रिं बलिं बुधः
॥१४४॥ ॐनमोभगवतिदीनास्ट देविरावण पूजिते दीर्घ केशिपिंगलाक्षी लंबस्तनिशुष्क गाने एहि एहि आवेशय आवेशय ह्रीं ह्रीं क्रौं क्रौं इमं बलिं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा! छट्टे मास में बालक को दीनास्या नाक की ग्रही के पकड़ने पर वह साफ साफ रोता है। मुख सुख जाता है, दूध कठिनता से पीता है और कोख में दर्द होने लगता है। उसके लिये यह बलि दें।सुगंध (इत्र) गंधमाला (फूलमाला) पांच रंग की नैवेद्य, तिल का पकाया हुआ चूर्ण, उड़द और कुलथी गन्ने का रस, मुनक्का धूप इन सब पदार्थों के साथ साथ एक मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसको तेल से लेप करे और इस बलि को उत्तर दिशा में सायंकाल के समय दें। पंडित इसीप्रकार सात रात्रि तक करें।
सातवाँ पास
सप्तं मासं धद्योबालं गन्हीते योषिणी ग्रही जंभनं गात्र ताप श्च दंत पीडा स्तना ग्रहः
॥१४६॥
उच्छुस च तथा जाति पुष्प गंधश्च जायते उदनं पाटसं चाऽथ गुडभक्षं तथैव च
॥ १४७॥
कुल्माषं तिल चूर्ण च गंध पुष्पाटऽलंकृतं पूर्वस्यां दिशि सायान्हे सप्त रात्रं बलिं दिशेत
॥१४८॥
बलि मंत्र समायुक्त सर्वमंत्र विशारदः अनालस्टोन कुर्वीत् ततो मुंचति साग्रही
|| १४९॥ ॐ नमो भगवति योषिणी देवते संग्राम प्रिये त्रिशूल धरे विरूपाक्षि जटामुकुट धारिणी कशांगि विकट दष्टे ऐहि ऐहि हीं ह्रीं क्रौं क्रौं आवेशय आवेशय इमं बलिं गृन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा ॥
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