SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 474
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SIRISEASOISTRIED विधानुशासन A50505TOTECTIONS होम मंत्रः कृत्वाऽमुं होममाचार्यो ऽविरुद्ध ग्रह शांतिकं पंच पल्लय सेकं च मासे कुर्यात्प्रयत्नतः ॥१२०॥ जंयु दाडिम विल्वाम्र कपित्थानाम् सुपल्लवैःपक्क तोरोन च स्नानं पंच पल्लव सेवनं ॥१२१॥ जिननामऽमिषे कादि पूजां कुर्यात् यथा विधि: मुनीनऽपि यथा शक्ति भोजयेत् सम्यगादरात् ॥१२२॥ एवं त्रिंश दिने कुर्यात् सर्वमेव यथा विधि: एवं कृते प्रयत्नेन सा प्रजायुष्मती भवेत् ॥१२३॥ आचार्य इस होम को जो विरोधी ग्रहों की शांति करने वाली है होम को करके मास के अंत में इन पाँचो पल्लयों के सेवन को यत्नपूर्व करें। जामुन अनार बिल्य आम कैथ (काथोड़ी) के पत्तों के पके जल से स्नान करने को पंच पल्लव सेवन कहते हैं। फिर जिनेन्द्र भगवान के अभिषेक और पूजा आदि को विधिपूर्वक करे और शक्ति पूर्वक मुनिराजों को भी भलीप्रकार आदर से भोजन करावें। इसप्रकार यत्नपूर्वक के तीसों दिन सर्वकार्य को विधि पूर्वक करें इसप्रकार यत्नपूर्वक कार्य करने से संतान दीर्घ आयुवाली होती है। इत्यो एते वलयः प्रोक्ता दिनानां त्रिशंतःक्रमात् शिष्टै एकादश मासाना मुच्यते अथः वलि कमात् ॥१२४॥ इसप्रकार महिने के तीसों दिन का क्रमशः वर्णन किया गया है अब शेष ग्यारह मासों की बलि का वर्णन क्रमशः किया जायेगा। इति दिन बलि विधानं द्वितीय मास द्विमास जातं गृन्हीति रेवति नामिका ग्रही तदा भवेत् स्वर्णमाशीत त्व हस्त पादयोः ॥१२५॥ ग्रीवायाः पुष्टतो भंगो मुख शोषश्च जायते बालस्य पसयां पानंत्ततो मुंचति साग्रही ॥१२६॥ Q5FESSINGS Y೯೭ ಗಣಪಥಳ//g
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy