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________________ SSIOSS5DISTRI5T05 विधानुशासन 190505125ICISCES पिष्टऽजौमेष महिषौ रक्त चंदन पुष्पितौ माषान्नं लाजकं शाकं न्यसेत संग्रौ तृतीयके ॥ ११६॥ वां सज रसः पिष्टा लेपयेत् धूपनं वचा सर्प त्वक निंब पत्राणि ततो मुंचति सा ग्रही। ॥ ११७॥ तीसवें दिन बालक को सजला नाम की यही के बालक को पकड़ने पर बालक की पीठ खिंचने सी लगती है उसमें घबराहट तथा दूसरे बहुत से विकार पैदा हो जाते हैं। उसके लिये पिसे हुवे जो का भेड़ और भैंसालाल चंदन पुष्प उडद धान की खील और बलि को तीसरीसंध्या में अर्थात् सायंकाल के समय में दे। यच और राल को पीसकर बालक के लपे करे तथा वच सर्प कांचली नीम के पत्तों की धूप दे। तब ग्रही बालक को छोड़ देती है। ॐ नमो भगवति जलाग्रही स्कंध सहिते भगवति सूर्याऽग्नि संप्रकाश प्रभे वरद महारते पूर्व देव देवेन संपाये शिरिय ध्वज सहिते रुने रौद्र कर्मकारिणी शिवे शिय तमे एव तमे एहि एहि बालकं रक्षनार्थ मिमं बलिं प्रति गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। गुडेन अन्नेन सिद्धार्थं पूपै स्तंदुलै स्तिलैः क्षीरेण सर्पिषा दधा समिद्भिः क्षीर शारिवनां स्नान क्रियादिभिः शद्भौ मंत्री मंत्र जपऽनंगें अप मृत्यु जयं होम विदधीत यथा विधिः ॥११९॥ गुड़ अन्न सफेद सरसों पुवे चावल तिल दूध घृत दही और दूधवलो वृक्षो की समिधा (होम की लकड़ी को लाकर ) रखे । फिर मंत्री स्नान आदि की क्रियाओं से शुद्ध होकर इस मंत्र को जपता हुआ विधि पूर्वक अपमृत्युंजय होम को करें। ॐ नमो देयाधि देवाय सर्वोपद्रव विनाशनाय सर्वाप मृत्युजय कारणाय सर्वसिद्धिं कराय ह्रीं ह्रीं क्रौं कौं ठः ठः देवदत्तस्याय मृत्यु धातय धातय आयुष्यं वर्द्रय वर्द्रय स्वाहा। ॐ नमो भगवते विश्व विधाधिपतये विश्व लोकनाथाय ॐ स्याहाभूस्वाहा भुवः स्वाहा, स्व स्वाहा ॐ ॐर हं हं क्षां वां क्षीक्षी स्वर्वाप मृत्युन घातय घातय देवदत्तस्यायुषं वृद्धिं कुरू कुरू स्वाहा। SSCI5DISTRISTOTRICIDE ४६७ PISIRIDIOSRIRIDICTRICIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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