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________________ SP5 50125 विद्यानुशासन 95959529595 तेवीसवें दिन की रक्षा यो विशंथ्यहोजातं महानद्या श्रयेत ग्रही तीव्रेक्षणम् मुक्ति च तदास्युर्वह्नविक्रिया पंच वर्ण चरुं माष पूपं धान्यं च संक्रम सायान्हे थवान्यसेत श्मशाने मंत्रपूर्वकं चौबीसें दिन की रक्षा चतुर्विशति दिने बालमऽविन्याश्रयते ग्रही नेत्राभ्यामास्य तचापि जल श्रावि तदा भवेत् ॥ ९५ ॥ श्वेत सर्षप संयुक्त गज दंतैः प्रलेपयेत् धूपः कुवा फलेन स्यात् ततो बालः सुरवी भवेत् ॥ ९७ ॥ तेवीसवें दिन बालक को महानंदी ग्रही के पकड़ने पर तेज निगाह दूध पीना और बहुत प्रकार के विकार हो जाते हैं। उसके लिये पांचों रंगो नैवेद्य उड़द के पूए और अनाज की बलि को क्रोधपूर्वक सायंकाल के समय मंत्रपूर्वक श्मशान में दे। सफेद सरसों हाथी दांत का लेप करे और कुआ फल (सदा गुलाब) की धूप दे तब बालक सुखी हो जाता है। ॐ नमो भगवति महानंदिनी ऐहि ऐहि द्वादशादित्यादि सवं देवता रक्षित बालं मुंच मुंच बलिं गृह गृह स्वाहा । घृत सिक्तऽमतो भुक्तं सरावे नूतने स्थितं सिद्धयै न्यसेद्वलिं मंत्री सायन्हे मंत्रपूर्वक ॥९६॥ ॥ ९८ ॥ ॥ ९९ ॥ वृक हस्ति नरवं पिष्टमऽजा मूत्रेण लेपयेत् कपि लोम्रा च निंबेज धूपरोच्च सुखी भवेत् ॥ १०० ॥ चौबीसवें दिन बालक को अंबिनी के पकड़ने पर उसकी आँखो और मुँह से पानी निकलने लगता है। घृत में सिके हुये भोजन को नवीन सकोरे में रखकर मंत्री सायंकाल के समय मंत्रपूर्वक सिद्धि के लिये बलि दें। भेडिये और हाथी के नाखूनों को पीसकर बकरी के मूत्र के साथ पीसकर उसका बालक के शरीर पर लेप करे और बंदर के बास तथा नीम पत्र की बालक के धूनी देने से बालक सुखी होगा। 25252525252525 × 25952525252595.
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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