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________________ SHARETRIERATIOTICE रिधानुशासन ASSISTORICISIOSOSI माषाम्नं लाज धान्ये च बलि मा पूर्षिकं तथा न्यसेत् उत्तरीय संगौ च सायान्हे मंत्र वित्तमः ॥९०॥ निगुडी ग्राहदंताभ्यां लेपोनरव केशयुक धूपनं पत्रं भंगेन स्नाद्यान्मुंचति साग्रही ॥ ९१॥ इयकीसवें दिन बालक को डाकिनी नाम की ग्रही के पकड़ने पर हड़ फूटन मुख का फटना इत्यादि होने लगता है। उसके प्रतिकार के लिये।उड़द का अन्न धान (चावल) और खील तथा उसकी पुरियों की बलि को सायंकाल के समय उत्तम मंत्री उत्तर दिशा में दें। निगुंडी मकर के दांत का लेप करने से तथा नाखून और बालों की धूप देने से तया पत्र भग जल से बालक को स्नान कराने से वह ग्रही बालक को छोड़ देती है। ॐ नमो भगवति डाकिनी एहि एहि इमं बालं ब्रह्मा विष्णुश्च रूद्र स्कंधो वेश्रण स्तथा रक्षतु ज्वलितं इदं बलिं गन्ह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा।। बाइसवें दिन की रक्षा द्वाविशंति दिने बालं गृहीते साजटाधारी तदाभवेदऽतिसारो रोदनं बहुविक्रिया ॥ ९२॥ माषोधन मापूपं च कसरं च सगंधका बलिं दद्यात् पित् वने प्रातमंत्री स मंत्रक ॥९३॥ पिपली चित्र मूलंतु मूत्रेणा जेन लेपयेत् धूपः केश वताभ्यां स्यात् पश्चात्मचति साग्रही ॥९४॥ बाइसवें दिन बालक को जटाधरी के पकड़ने पर दस्त होना रोना और बहुत प्रकार के विकार होने लगते हैं। उसके लिये उइद भात पुरी कचौरी और गंध की बलि को मंत्री मंत्र पूर्वक प्रातःकाल श्मशान में दे। पीपल चित्रक (चीते की जड़) को बकरे के मूत्र में पीसकर बालक के लेप करे और बाल तथा यच की बालक को धूनी दे। तो इसके बाद वह ग्रही बालक को छोड़ देती है। ॐनमोभगवतिजटाधारिणी ऐहि ऐहि ब्रह्मा विष्णु महेश्वराक्षंतुज्वालितमिमंबालं मुंच मुंच बलिं गन्ह गृह स्वाहा ॥ ලගහැටටටටටg ¥;% වටයුතුවලට
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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