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CSCISIONSCISIO505 विधानुशासन 9501505ICISORSCISI
अठारहें दिन की रक्षा
अष्टादशाह जाततं गन्हीते प्रवरी ग्रही तदा वाक्र नुवणं जंभा जिव्हाया वारि सेवनं
॥७९॥
दीरानं माष भक्ष्यं च नव पात्रेस गोजितं उत्तरस्यां दिशि प्रात थलि दद्यामाका
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तगरं घेत सिद्धार्थ जल पिष्टसु लेपयेत् लसुनं सर्प निर्माल्यं धूपयेतु सुरवी भवेत्
॥८१॥ अठारहवें दिन बालक को प्रवरी नाम की ग्रही पकड़ने पर बोली में भारी फर्क हो जाता है। जंभाई आती है जीभ से पानी निकलता है। उसके लिये दूध चावल की खीर उड़द का भोजन की बलि को नये बर्तन में रखकर उत्तर दिशा में प्रातःकाल के समय मंत्रपूर्वक रखे। तगर सफेद सरसों को जल से पीसकर लेप करे तथा लहसून सर्प कांचली की धूप देने से बालक स्वस्थ हो जाता है।
ॐ नमो भगवति प्रवरिकारी जटा मुकुट धारण्यै निम्मासाथै ऐहि ऐहि आवेशय आवेशय ही ह्रीं क्रौं कौं इमं बलिं गृह गन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा।।
उन्नीसवें दिन की रक्षा
एकोन विशति दिने बालं गन्हाति योषिणी तदास्या त्मोह यमने विवेपः पाद हस्तयोः
॥ ८२॥
प्रतिमा युगलं कत्था मृदा पिष्टेन चोदरे तिल दुग्धान्न मादाय न्यसेत्संध्या तृतीयके
॥८३॥ चंदनाऽति विषा कुष्टै लेपयेत् धूपनादपि । येणु त्वकपिच्छं नालाभ्यां पत्रं भंगा च्च सिद्याति
॥८४॥ उन्नीसवें दिन बालक को घोषिणी नाम की ग्रही के पकड़ने से मोह वमन हाथ पैरों में बैचेन ही हो जाती है। पिसी हुई मिट्टी की प्रतिमायें दो बनवाकर उसके पेट में तिल दुग्ध चावल की खीर रखकर सायंकाल के समय तीसरी संध्या में बलि दें। चंदन अतीस कूठ का लेप करने से बांस की छाल और सेंभल वृक्ष की देडी की धूप दें। और पत्र भंग से जल से स्नान करावे।
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