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CASIRISTRI52525255 विधानुशासन PSPSCISIODSOTROSI
पकाम्नं शाक माषाऽम्नं कोलस्थं च बलिं तथा नालिकेर पयोन्यस्ये द्वारि तीर्थे समंत्रकाः
॥ ७४॥
पोज किमार्थ गुग्गुल तथा तेनं मष्टोधूप स्तुगोधेगेन भवेत् सुरवी
॥७५॥ बालक को सोलहवे दिनं महेश्वरी नाम की यही को पकड़ने से दूध से अरूचि ज्वर और वमन होने लगती है। और वह आँखे बंद करने लगता है | उसके लिये पका हुआ अन्न शाक उड़द का अन्न नारियल के दूध और कुलथी का बना हुआ भोजन की बली को तीर्थ के जल में मंत्र पूर्वक देवें। हाथीदांत सफेद सरसौं और गुग्गल का लेप करे धृत की मालिश करे और गाय के सींग की धूप दे। तो बालक सुखी होगा।
ॐ नमो भगवति माहेश्वरी विकट दष्ट्रां कराले सर्व भूत प्रिये ऐहि ऐहि आवेशय आवेशय ही ह्रीं क्रौं क्रौं इमं बलिं गृह गृह बालकं मुंच मुंच स्वाहा।
सत्रहवें दिन की रक्षा
सप्त दशाहवयस्कं च ग्रहीते यारूणी ग्रही तदास्य शोषगंधो च गात्रे स्फोटश्च जायते
॥७६॥
माषान्नं लाजकं धान्यं प्रातरुत्तर तो बलिं न्यास्टो त्समंत्रकं हिंगु यचाभ्यां लेपयेत्प्रजा
॥७७||
गुग्गुलं सर्षपं चैव मिश्री कृत्य प्रधूपयेत् एव मात्त प्रतिकारां बालं मुंचति साग्रही
॥ ७८॥ सत्रहवें दिन बालक को वारुणी ग्रही के पकड़ने से खुसकी शरीर में दुर्गध और हड़ फूटन होने लगती है। उसके लिये उड़द का अत्र धान्य की खील और चावल की बलि को मंत्र पूर्वक प्रातःकाल के समय उत्तर की तरफ दें। और हींग और वच का लेप करें। गुग्गुल और सरसों को मिलाकर धूप देने । इस प्रतिकार को ग्रहण करने से बालक को वह नाही छोड़ देती है।
ॐ नमो भगवति वारुणिके श्वेतांबर धरे श्वेताभरण भूषिते ऐहि ऐहि आवेशय आवेशय ही ह्रीं क्रौं कौं इमं बलिं गन्ह गृन्ह बालकं मुंच मुंच स्वाहा। ASSISTICTRICISIRESIDEORE ४५१ PINIONSIDERCIEOSRIES