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________________ मंगल हर नयनो दधि नवद्धि सप्त ऋतुरूपं मदनशराः कोष्टेषु नय सु लिखिता घट वदने खटिकया प्रदक्षिणतः ॥ ८ ॥ अभ्यर्थ गंध पुष्पै: प्रसूतिकायाः पुरः स्थाप्य दृष्ट मिदं सूतिका चक्रं तस्या प्रसूत्यैस्यात् ८ विद्यानुशासन 959595295 A ६ ३ * 4€ ७ २ ॥९॥ मंगल ८ हरनयन ३ उदधि ४ नय ९द्धि २ सप्त ७ ऋतु ६ रूप १ मदन शरा ५मंगल ८ हरनयन शिवजी के नेत्र ३ समुद्र ४ नव ९ द्वि २ सप्रसात ऋतु ६ रूप १ मदन शरा काम के बाण ५ को खडिया से क्रम पूर्वक मिट्टी के घड़े पर चारों तरफ नौं कोठों में खड़िया से लिखे। इस मंत्र को गंध पुष्प धूपादि से पूजकर गर्भिनी के प्रसूति ग्रह में स्थापित कर दें । इस यंत्र को देखते ही गर्भिणी के बच्चा हो जाता है। सप्तांग शशि भृत् पूर्व रूद्र पंच चतुस्तिथीन् ऋतु रंध कला नेत्र विश्वाऽष्ट दश पावकान् 9595951951999 ४२९ 959695959595 112013
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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