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SI5015DISIONSION505 विधानुशासन USD510351315015OTI
लिखे रवटिकया चक्र कलशास्य प्रदक्षिणं द्दष्टं स वज रेस्वागं तवाभिण्याः प्रसूतये
॥११॥
| १३| ८ | १९
सप्त ७ अंग १२ शशि भृत १ पूर्व १४ रुद्र ११ पंच ५ चतु ४ तिथीन १५ ऋतु ६ रंध्र ९ कला १६ नेत्र र विश्व १३ अष्ट ८ दश १० पायकान ३ अग्नि यंत्र के आकार में मिट्टी के कलश के चारों तरफ खडिया से लिखे इस यंत्र को देखते ही (जिसके वज़ रेखा भी हो यंत्र के बाहर ) तुरन्त ही बधा हो जाता है इस यंत्र की धूप दीप अक्षतादि से पूजन करना जरूरी है।
इदमेवावृतं चकं सव्ये घंटादि विद्यया
लिरिवतं स्तंभयेत् सर्वान उपसर्गा न्मसूरिका ||१२॥ या इसी यंत्र के चारों तरफ बायें से घंटाकर्ण विद्या मंत्र लिखने से सबप्रकार के उपसर्ग मसूरिका आदि कष्टों का स्तंभन होता है।
घंटादि विद्या ॐघंटा कर्णमहावीर सर्वभूते हिते रत उपसर्ग भयं घोरं रक्ष रक्ष महाबल स्वाहा
॥ १३ ॥ घंटादि विद्या
योगेश्वराय गोत्रे अमृताय नमः ऐषो अयुत जपात् सिद्धो रोद्र स्वाल दलादिषु विलोम लिरिवतो मूर्दागतः सधः प्रसूति कृत
॥१४॥ यह मंत्र दस हजार जपने से सिद्ध होता है इस मंत्र को रौद्र वाले पत्ते आदि पर उलटा लिखकर गर्भिनी के सिरपर रखने से तुरन्त ही प्रसव हो जाता है। CTERISTOTSIDDRISTRISOTE| ४३० PTSIRIDIOESOTRORISTOTRA