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________________ CISIOI501501510652015 विधानुशासन 2050550551015123512558 उसीप्रकार पश्चिम दिशा में यक्ष के मंदिर में और उत्तर दिशा में ध्रुव के मंदिर में पीली बलि को विधि पूर्वक रखे। स्थापयेत् रक्तं चूर्णतं सुसंध्यै पुरमध्यमे एवं बलि विद्यानेन तर्पयित्वा महाग्रहान ॥२०॥ लाल चूर्ण की बलि की शांति के वास्ते नगर के बीच में रखे इसप्रकार बली के विधान से महाग्रहों को संतुष्ट करें। आचार्यः स्वयमादाय शंकुला सार्वकार्मिकां सन्नंगल बदायु मम गुजयो स्तथा ॥२१॥ आचार्य सब काम करने वाली शंकुला को स्वयं लेकर अच्छे मांगलिक मंगल स्तोत्र पढ़ता हुआ दोनों भुजाओं के बीच के भाग में। आनाभि लंबयेन्मंत्रमऽपराजितकं जपन जिन गंधोदकं शांति मंत्रै सिंचन यथाविधि ।। २२॥ नाभितक लटकाकर अपराजित मंत्र को जपता हुआ और उसको जिनेन्द्र भगवान के गंधोदक और शांति के मंत्रों से विधि पूर्वक सींचता हुआ। दादिभिः प्रयंजीत माहिषं सुफलपदं तत्राचार्य सत्कुयात् हेम वस्त्रादिभि धुवं ॥२३॥ दाभ आदि से अच्छे फल को देने वाले भैंस के दूध का प्रयोग करावें तब आचार्य का निश्चय से स्वर्ण वस्त्र आदि से सत्कार करे। प्रीतहि तरिमन तत्कर्म सर्वच सफलं भवेत् ॥२४॥ क्योंकि उसके प्रसन्न होने पर सब कार्य सफल हो जाते हैं। एवं पुण्यवती नित्यंबिभर्ति वस शंकुलां सर्व मंत्रोषधापिष्टां सर्वग्रह विनाशिनी ॥२५॥ इसप्रकार पुण्ययाली सब मंत्र और औषधियों से युक्त तथा सब ग्रहों को नष्ट करने वाली सोने की शंकुला को गर्भिणी धारण करती है। तस्या भूतपिशाचादि देवाच्चोरादि मानुषात् करिशार्दूल सिंहादि मृगान् सनितस्तथा ॥२६॥ CASIO510150150150105) ४२५ P1519551015131512751015015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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