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________________ CISTRISTOTREYSIS विधानुशासन RECISIORSCIRCISIOTES उसके धारण करने से गर्भिणी को भूत पिशाच आदि देवों चोर आदि मनुष्यों हाथी बाघ सिंह सर्प आदि पशुओं तथा उसमें जंगमात्स्थायराच्चापि विषादऽग्नि जलादितः महाभूताद्भयं नास्ति गर्भ व्यापादिका स्तथा जंगम या स्थावर विष से अग्नि या जल से तथा अन्य गर्भ को नष्ट करने वाले महान भूतों से भय नहीं रहता है। दोषान नश्यति रोगाश्च सर्वे नित्यं न संशयः निराबाधं प्रसूते च प्रजा चायुष्मती भवेत् ॥२८॥ उसके गर्भ तथा गर्भिणी के सब दोष और रोग निस्संदेह नष्ट हो जाते हैं और यह बिना किसी बाधा के दीर्घायु वाली संतान उत्पन्न करती है। ॥२९॥ तस्मात् सर्व प्रयत्नेन् विधेयात् शंकुला विधि इस वास्ते सब प्रकार के प्रयत्न से शंकुला की विधि को अवश्य करें। ॥ सूतिका ग्रह रक्षा विधान ॥ कल्पिते सूतिका गेहे मध्ये संमाय गोमौः माहेन्द्र मंडलं कृत्या शालि पूगान् प्रसार्य च ॥१॥ जिस घर को सूतिका ग्रह बनाना हो उस कल्पित सूतिका ग्रह को जमीन पर न गिरे हुवे गोबर से लीपकर तथा माहेन्द्र मंडल बनाकर धान के ढेर को बिखेर कर यहां निम्नप्रकार के घटों की स्थापना करें। श्वेत सूत्रावृत्तान् शुद्धान् स्वच्छांबु परिपूरितान सप्तलोहाष्ट वक्ष स्थक नव रत्नादि गर्भितान् ॥२॥ श्वेत धागे से लिपटे हुये शुद्ध स्वच्छ जल से भरे हुये सातों धातु लोहा संयुक्त तथा आठों वृक्षों की छाल और नय रत्नों से भरे हुवे। नववस्त्रावृत गलान् बीज पूरापितान् नान साक्षतान् गंधपुष्पान्न धूप दीपादि पूजितान् ॥३॥ ಇದರಿಂದ ¥R೯ ಗಡಿಬರಿಥಣಿ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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