SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ©SP5959595951 विधानुशासन 55 ततो विमल नक्षत्रे शुभे राशीव च स्थिते माहेन्द्र मंडलं चूर्णः कृत्वा कोणेषु निक्षिपेत् ॥ १३ ॥ तब अच्छे नक्षत्र की अच्छी राशी में आने पर चूर्णो से माहेन्द्र मंडल बनाकर उसके कोणों में निम्नलिखित वस्तुएं रखे । ७ शहरक पूर्ण कुंभान् सुवर्णादि लोह रत्नादि गर्भितान् नववस्त्र वृत गलान, प्रदीपान् स शालिकान् ॥ १४ ॥ सोने आदि लोह धातुओं और रत्न भरे हुए गले पर नये कपड़े से लिपटे हुवे ऊपर धान और दीपक रखे हुये घड़ों को माहेन्द्रमंडल के कोणों में रखे । मध्ये निधाय येत् पीठं शुद्ध वस्त्रयुगावृतं तत्रासये लसत क्षौमां सर्वाभरणभूषितां सर्वमंगल संपन्नप्राग्मुखीं गर्भिणी क्रमात् ॥ १५ ॥ उस मंडल के बीच में शुद्ध वस्त्रों से लिपटे हुवे आसन रखे उसके ऊपर शोभित वस्त्र पहिने हुए सब आभूषणों से ही हुई सबके मंग से युकमी तो बिठायें। ततः पंच बलिं दद्यात् लाजा पूपादि मिश्रितं चतुर्द्दिक्षु क्रमैणैव पुर मध्ये तथैव च ॥ १६॥ तब क्रम से चारों दिशाओं में और नगर के बीच में धान की खील और पुवें आदि मिलाकर पांच बलि दें। तत्रं तं रक्तं वर्णाद्वांय त्रिरावत्यं बलिं क्रमात् पूवस्यां दिशि सूर्यस्य गृहमध्ये निवेशयेत् 11 219 || तब लाल रंग की तीन बार गर्भिणी पर उतारकर पूर्व दिशा में सूर्य के गृह में रखे । कृष्णवर्ण बलिं तद्वत क्षेत्र पालस्य मंदिरे | दक्षिणस्यां दिशि क्षिप्तं क्षिपेत्सम्यग्यथा विधि ॥ १८ ॥ फिर काले रंग की बलि को उसी प्रकार विधिपूर्वक दक्षिण दिशा में क्षेत्रपाल के मंदिर में रखे । प्रतीच्यां तु तथा कुर्यात् परीतं यक्ष धामनि पीतं बलि मुदीच्यांतु निदध्या ध्रुव कूलके 252525252525P: --- P5252525252525 ॥ १९ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy