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________________ 959695961 विधानुशासन 95959595959 तथा नवरत्न व्याघ्र नख धनुष की कोटि उल्लू और चकोर के स्वयं गिरे हुवे पंख, सर्प और गीदड़ी के मुख के अग्रभाग अर्थात दांत, खरगोस और मोर के नख काला घोड़ा बन्दर बिलाव न्योला और गांव के सूकरी का । अहत्वो पात्र अकंटकं कमो टिकेटकं वधका अस्त्रं तथा गर्भ वराटकमपि प्रियं ॥७॥ वर्धकास्त्रं तथा गर्भ वराट कमपि प्रियं आरोहा कर चूडाव्य विषकं दामणिनपि के बिना मारे हुये अर्थात् स्वयं गिरे हुए उनकी डाढे मच्छी की हड्डी कोटिक चक्र मालती के फूल कांटे घात करने के अस्त्रों तथा कोड़ों के अन्दर का भाग बहुत अधिक चढ़ने वाला विष और पशुओं के बांधने की रस्सी ततस्तान्यशुद्धाबुं कुंभे दिनत्रयं मंत्रद्येद्विधिना शांति मंत्रे मंत्री विचक्षणः || 2 || निबंकांजी रकं कोल बीजास्थीनीत्य मुनुक्रमात सौवर्ण शंकुलाया से बोधयित्वा सुयोजयेत् ॥९॥ नींबू जीरा झाडी बोर की गुठली और हड्डियों के क्रम को लेकर रखे और शंकुला बनवा लें। 1180 11 तब उन सब वस्तुओं को शुद्ध जल से भरे हुये घड़ में रखकर चतुर मंत्री विधिपूर्वक शांति मंत्र तीन दिन तक पढ़े । आचाय नव वस्त्राभ्यां परिधानो तरीय भृत मुद्रादिभूषितः प्रीतः सकलीकृत विग्रहः ॥ ११॥ उससमय आचार्य नवीन धोती और चादर पहिन कर अलंकार धारण करके प्रेम से सकली करण क्रिया को करें। ततः शुद्धां समायाय पुष्पाक्षत सुशोभितो हे पात्रे क्षिपेत्सम्यक सर्व मंगल संयुते ॥ १२ ॥ तब उस समय शुद्ध द्रव्य को लाकर पुष्प अक्षत से सुशोभित सब प्रकार के मंगल से युक्त सुंदर सोने के बर्तन में रखे । 9596959519 ४२३ PS959695959 Po
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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