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________________ 95959696991 विधानुशासन 959695959 गर्भाऽवधारिणी देवि द्वितीय मासि गर्भिणी गृहीते ऽथ बलिं तस्या कुर्वीतैवं यथा विधिः ॥७॥ दूसरे मास में गर्भावधारिणीदेवी गर्भिणी के पास आती है उसके लिये नीचे लिखे प्रकार से विधि पूर्वक बलि दें। माषाउने हमेश व गुई मिश्र तिलं तथा गंध पुष्पं स धूपं च सार्द्धदीपेन मंत्रवित् ॥ ८ ॥ कंसपात्रे समादाद्ये श्रीरावर्त्य बलिं क्रमात् कृत संमाज्जित देशे पुर मध्ये निशि क्षिपेत् ॥ ९ ॥ उड़द के अन्न का श्वेत भोजन गुड़ तिल चंदन पुष्प और धूप को दीपक सहित कांसी के बर्तन में रखकर इस मंत्र से तीन बार गर्भिणी पर उतार करके नगर के बीच में शुद्ध किये हुए रात्री के समय रखे और यह मंत्र बोले । 'स्थान में ॐ नमो गर्भावधारिणी ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं ऐहि ऐहि गर्भ रक्ष रक्ष इमं बलिं गृन्ह गुन्ह स्वाहा ॥ देवपूजां पुरा कृत्वा मुनीनपि च भोजयेत एवं सप्त दिनं कुर्यात् प्रजा चैवं विवर्द्धते ॥ १० ॥ प्रथम देवपूजा करके फिर मुनियों को भोजन करयें इसप्रकार सात दिन तक करने से संतान की वृद्धि होती है। तृतीये मासि गर्भिण्या गात्रं प्राप्स्यति भिका प्राप्ते तस्येव बलिं देयादेवं सर्वप्रयत्नतः ॥ ११ ॥ गर्भ के तीसरे मास में गर्भिणी के शरीर को जंभिका नाम की देवी ग्रहण करती है तब उसका प्रयत्न करके उस अवसर पर उसके ग्रहण करने पर उसको निम्नलिखित बलि दें। पंच वर्ण युतं भक्तं पायसं दधिकं तथा कुल्माषं तिल चूर्ण च सघृतं शर्करान्वितं ॥ १२ ॥ धूप दीपादि गंधादा पात्रे हे मे निधीयतां त्रिवत्यं बलिं सूरिर्द्दक्षिणस्यां दिशि क्षिपेत् 25252525252525 ×· 25252525252525 ॥ १३ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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