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S50150150151015105 विधानुशासन 95015015051215105
अतः प्रवक्ष्यामि गर्भ मासे बलिं क्रमात्
टाय दुक्तं भवे चाहं पूर्वशास्त्रे यथाविधि: अब क्रम से गर्भ के एक मास की बलि को पूर्व शास्त्रों के अनुसार विधि पूर्वक कहा जाता है।
॥१॥
गर्भिणी प्रथमे मासे याति विद्युतधारिणी दलं गाराम तैय कुमार सपर्ट हसि
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धूप दीपादि संयुक्तं बलिं पात्रे निधारावै आवर्त गर्भिणी सायं पूर्वस्यां दिशि निक्षिपेत्
॥३॥ गर्भिणी के पास प्रथम मास में विधृतधारिणी नाम की देवी आती है। उसके लिये भात, खीर, कुल्माष (कुलथी) घी, दही, धूप, दीपादि संयुक्तं यलि संध्या समय निम्नलिखित मंत्र को पढ़कर पूर्वदिशा की तरफ रख दें। इस बलि को गर्भिणी पर पहिले उतारा करके मंत्र के साथ फिर रखे।
ॐ नमो भगवती विधतधारिणी गर्भस्तंभिनी ही ह्रीं क्रों को ऐहि ऐहि तिष्ठ तिष्ठ इयं बलिं गन्ह गन्ह स्वाहा।
पश्चातां गर्भणीमेनां पूजयेत्पुष्प वृष्टिभिः एवं पंच दिनं कुर्यात् मंत्री सन्मत्रं पूर्वकां
॥४॥ इसके पश्चात उस गर्भिणी का पूजन फूल बरसा कर करे और इस प्रकार अच्छे मंत्रों से मंत्री पांच दिन तक करें।
स्नातः सन्नव वस्त्राभ्यां परिदानो त्तरीय युक
स्वर्णगुलियं संयुक्तंः सन कुाद विधि मिमं सुधीः फिर वह बुद्धिमान स्नान करके नवीन धोती और दुपट्टे ओढ़कर सोने की अंगूठी पहिने हुए नीचे लिखी हुई विधि को करें।
चतुर्विशद् यतीन् सम्यग् भोजयेद्दिन सप्तकं । ततः शांति भवे तस्याः प्रजाचागुमति भवेत्
॥६॥ चौबीस यतियों को सात दिन तक भलीप्रकार भोजन करावें तब उस मास की विघ्न की शांति होती है। और संतान दीर्घायु होती है।
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