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ST5RISTRISTOT5215105 विधानुशासन 95015RISIOSCISIONS पांचो रंगों का भोजन खीर दही कुलथी-तिल की पिष्टी का चूर्ण घृत और शकर सहित धूप दीपक सुगंधित चंदन फूलों सहित इस सब सामग्री को सोने के बर्तन में रखकर गर्भिणी पर तीनबार निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुवे उतारा करके पंडित पुरुष दक्षिण दिशा में इस बलि को रख दें।
ॐ नमो भगवती जंभिके महा भिनी अति जंभे गर्भ रक्षिणी ह्रीं ह्रीं क्रौं क्रौं ऐहि ऐहि इमं बलिं गन्ह गृह स्वाहा
पूर्वोक्तन क्रमेणैव कुर्वतान्यत्समंत्रक एवं कृते तदा तस्या शांति भवतिनिश्चयः
॥१४॥ इसमें पूर्वोक्त क्रम से ही शेष क्रियाओं को भी मंत्र सहित करने से निश्चय से ही शांति हो जाती है।
चतुर्वे गर्भिणी मासे देवता गर्भ धारिणी गन्हीतेय बलिं तस्यै शुद्ध भक्तं घृतं दधिं
॥१५॥
माषान्नं धूप दीपाद्धि संयुक्तं बहु शर्करं पात्रे निधायता येतं त्रिरावर्त्य समंत्रक
॥१६॥
संध्यायामार्जनं कत्वा शांति मंत्र जपेत्सदा साऽयं सप्तदिनं चैव पूर्वस्यांदिशि निक्षिपेत्
॥१७॥ चौथे मास में गर्भधारिणी नाम की देवी आती है। उसकी बलि शुद्ध भोजन घृत दही उड़द के अन्न की मिठाई धूप दीपक आदि सहित बहुत सी शक्कर को एक बर्तन में रखकर, मंत्र पूर्वक गर्भिणी पर तीन बार उतारा करके, सायंकाल के समय स्नान करके सदाशांति मंत्र का भी जाप करता हुआ सातदिन तक प्रत्येक संध्या को उपरोक्त बलि को पूर्व दिशा में रख दें।
ॐ नमो भगवती गर्भ धारिणी देव गंधर्व पूजिते जंभे ह्रीं ह्रीं क्रौं क्रौं ऐहि ऐहि इमं बलिं गृह गृह स्याहा॥
पूर्वोक्तेन कमणैव पूजयित्वाथ गर्भिणी
मुनीनाऽमपि च पूर्वोक्तान भोजयेन्मंत्रवित्सुधी: ॥१८॥ फिर पूर्वोक्त क्रम से पंडित पुरुष गर्भिणी की पूजा करता हुआ पूर्वोक्त मुनियों को भोजन करायें।
देवि विकट जया सा गन्हीते मासि पंचमे प्रजावतिं तदा तस्या क्लेशोपि बहुद्या भवेत्
॥१९॥
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