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PSPSP596
विधानुशासन 959595959595
के विषबीजं वं स्तोभनं गं गणपति घं स्तभनं डं असुरं वं सुर बीजं छं लाभ मृत्युनाशनं च जं ब्रह्म राक्षस जं मृत्युनाशनं झ चन्द्र बीजं काम्यादयः धर्मार्थकाम मोक्षराज वश्याकर्षणं चं - य मोहनं - टं क्षोभणं चित्र करलंक कारि- ठं तन्द्र बीजं विष मृत्यु नाशनं डं गरुड बीजं - विषनाशनं च ढं कुबेर बीजं उत्तारभिमुखं स्थित्वा चतुर्लक्ष जपात्सिद्ध धन धान्य समृद्धि शंख निधि पद्म निधिं च करोति ।
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कं विष बीज - खं स्तोभन गं गणपति - घं स्तंभन - डं असुर बीज चं सुर बीज छं लाभ और मृत्यु नाशन है- जं ब्रह्म राक्षस जं मृत्यु नाशन झं चन्द्र बीज है यह काम्य आदि धर्म अर्थ काम मोक्ष को देते है और राज्य को यश्य और आकर्षण करता है। ञं मोहन -टं क्षोभण और चित्त को कलंक कारी है। ढं चन्द्र बीज है विष बीज है और मृत्यु नाशन है। डं गरुडबीज है और विष नाशन हैदं कुबेर बीज है इसको उत्तर की तरफ मुख करके चार लाख जपने से सिद्ध होती है। यह धन धान्य की समृद्धि शंख और पद्म निधि को देता है।
असुरं बीजं त्रिलक्ष जपात्सिद्धिं तं अष्ट वसुधा बीजं जपात् धन धान्य समृद्धिः य यमराज बीजं मृत्यु भय नाशनं दं दुर्गाबीजं वश्यपुष्टिकरं धं सूर्यबीजं जय सुरव करं न ज्वर बीजं ज्वर देवता बीजदं पं वीर भद्र बीजं सर्वविघ्न विनाशनं- फं विष्णु बीजं धन धान्य वर्द्धनं बं ब्रह्म बीजं वातपित्त श्लेष्म रोग नाशनं भं भद्रकाली बीजं भूतप्रेत पिशाच भयोच्चटानं मं मालाग्नि रूद्रबीजं स्तोनं मोहन विद्वेषण करें: भूतप्रेत पिशाचावा ह्वाननं अष्ट महासिद्धि करं यं वायु बीजं उच्चाटनं रं आग्रेय बीजं अग्र बीजं उग्र कर्म कार्य कर्तु
णं असुर बीज है यह तीन लाख जपने से सिद्ध होता है। तं अष्ट वसुधा पृथ्वी बीज है इसको जपने से धन धान्य की समृद्धि होती है। यं यमराज बीज है- यह मृत्यु भय नाशक है। दं दुर्गा बीज है यह वश्य पुष्टि करते है। घं सूर्य बीजं है- जय सुख कर रहे है। नं ज्वर बीज ज्वर देवता का है। वीरभद्र बीजं सर्व विघ्न विनाश कहे है फं विष्णु बीज है। धन धान्य यर्द्धक है। बं ब्रह्म राक्षस बीजं है। वातपित्त कफ रोग का नाशक है। भं भद्रकाली बीज भूत प्रेत और पिशाच के भय कर्ता उच्चाटन करता है। मं मालाग्निरुद्र बीज है। स्तोभन मोहन विद्वेषण करने वाला भूतप्रेत और पिशाच आदि का आवन करता है और अष्ट महासिद्धि को देता है। यं वायू बीज है उच्चाटन करता है रं अग्नि बीज उस आदि कर्मों को करता है।
इन्द्र बीजं धनधान्य सपंत्करं वरुण बीजं विष मृत्यु नाशनं : शंलक्ष्मी बीजं लक्षजपात श्री करं षं सूर्यबीजं धर्मार्थ काम मोक्ष करं सं वागीशं ज्ञानं करं वाचां सिद्ध करं हं शिव बीजं दश सहस्रजपात्कार्या भिद्धिः
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