SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ STORISSISTRISTRISTD35 विद्याबुशासन ISIO5251015105065 भूसली लक्ष्मणा पुत्र जीवों रक्त वटांकुराः वंध्या च पिष्टवा क्षीरेण पीता गर्भ प्रदा ऋतौ ॥२७॥ मूसली लक्ष्मण जीवा पोता और लाल वड़ के भी अंकुर को पीसकर ऋतु काल में दूध के साथ पीने से बंध्या भी गर्भवती हो जाती है। गृहीत मश्वगंधाया मूलं पुष्ये पिबेत् ऋतौ क्षीरेण क्षीरे भुक् पुत्र संभुतिमभिलात्सुका ॥२८॥ पुत्र उत्पत्ति की इच्छी करती हुई स्त्री ऋतुकाल में असगंध की जड़ को पुष्य नक्षत्र में लाकर दूध के साथ पीयें। कार्यास शलाहूनां कल्कं क्षीरेण पिबतु सप्तानां बंध्या पुत्रोत्पत्ति वावंतीं पुण्य दिवसेषु ॥२९॥ पुत्र की इच्छा करती हुई बंध्या ऋतुकाल के दिनों में सात दिन तक दूध के साय कपास बेल के कपास के कल्क को पीवें। कंकैली सौम्य मूलं न्यग्रोध स्यांकुरांच कष्ण पशौ क्षीरेण ऋतौ स्नाता पिबेत् स्थिता नाभिमात्र जले॥ ३०॥ कंकेली (अशोक) वृक्ष एरंड की जड़ तथा वड़ के अंकुरों को काली गाय के दूध के साथ नाभि तक के जल में खड़ी होकर पीयें जो ऋतु का स्नान की हुई हो। लक्ष्मी विशु क्रांता मूलान्य श्वदर्भ दुर्वाणां वंशस्य चांकुरानपि गोपटा पिवतु गर्भार्थ 11३१॥ हल्दी संखा हूली की जड़ पीपल वृक्ष डाभ दूब और बांस के अंकुरों को भी गाय के दूध के साथ गर्भ के वास्ते पीयें। लक्ष्मी ( फल प्रयंगु ऋद्धि वृद्धि) लक्ष्मी पया मूलाश्लत्योत्तर मूल कल्क मथ पयसा मूल मज्जा क्षीर युतं षंढारथपिबेद्वंप्या ॥३२॥ बंध्या लक्ष्मी वजा मूल (लजवंती की जड़) पीपल वृक्ष की उत्तर तरफ की जड़ के कल्क को बकरी के दूध में मिलाकर दूध के साथ पीवें। SSDISTRIEDISTRI51250 ४०६ PERSOSIATERISTRISTRIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy