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S5DISTRISTRISTRISARTA विधानुशासन HARIHO505PISODE मयूर शिखा अथवा चिरचिटा कुनिंब (बकायण) को दूध में कल्क बनाकर शीघ्र पुत्र की उत्पत्ति की इच्छुक स्त्री ऋतुस्नान की हुई यह पीवें।
अंडकै रंड कोरडं वंध्यानां मूलमापिबेत् सुतोत्पत्ति उत्सुका नारी क्षीरेण प्रथमाऽत्तवः
॥२१॥ अथवा पुत्र की उत्पत्ति की उत्सुक स्त्री ऋतुकाल के प्रथम दिन दूध के साथ एरंड कोरंटो (कैर) और बांझ ककोड़ा खरेटी की जड़ को पीवें।
शिरवा वल शिरयामूलं गन्दा क्षीरेण कल्कितं
गर्भ दप्येति बंध्यायै सेवितं ऋतु वासरात् ॥२२॥ गाय के दूध में कल्क बनाये हुवे मयूर शिखा तथा गाजर ऋतु के दिनों में सेवन किये जाने से वंध्यों को भी गर्भ धारण करा देती है।
श्रीमूलं लोध धात्र्यस्थि वट श्रंगे हरेणुका प्रतौ दिनं त्रय पीता गर्भायाः पथ्या पयोन्वितां
॥२३॥ श्री मूल (बिल्य) लोध आयंले की मीजी यट वृक्ष के छोटे पौधे मटर धान्य को प्रातुकाल में संतान के लिये तीन दिन पीने से गर्भ रहता है।
द्वितियं बलयों स्तलं सिता क्षीरं पतं च गौः निपीता मार्तये पत्नी मंत्रवत्री वितन्वतैः ।
॥२४॥ अथवा दोनों सरेंटियों के देल शकर दूध और गाय की घी को ऋतुकाल में पीने से आंते फैलती
सहा सहां घि शिरसं पायो त्पयसा वधूः अथवा अश्वत्थ यंदकं गर्भ संभव कांक्षिणी
॥२५॥ अथवा वहु को सहा (भुगवन -सहदेई गंवार पाठा) सहाघ्रि जगली उड़द) और शीरस को दूध के साथ पिलाये अथवा गर्भो तप्तित की इच्छावीली स्त्री पीपल और बड़ के फल दें।
क्षीरेण पुत्र जीवस्य मूलं बीजानऋतौ पिबेत् वंध्याया गर्भ संभूत्यैबीजं केवलमेववा ।
॥ २६॥ वंध्या को गर्भधारण कराने के लिये जीवापूता की जड़ और बीजों को अथवा केवल बीजों को दूध के साय पिलाये। C5T055125510151085105RTE ४०५ PI5015010521508510051