SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 055851055125TTET25 विधानुशासन HARISTOISTRISTRISTOTRI बीजानि मातुलिंगस्य क्षीरे पक्वान्याग्रा पिबेत् नारी यतेन सहसा सहसा गर्भ पत्यि पिबेत् ॥१४॥ जो स्त्री बिजौरे के बीजों को दूध में अथवा घी के साथ धीरे धीरे पीती है वह तुरन्त ही गर्भ धारण कर लेती है। श्रिया वटांकुराणं च देयाश्च स्वरसा नपि अर्पितावानि पीता वागर्भ दधतियोषितां ॥१५॥ बड़ के अंकुरों को स्त्री को दने से कांति बढ़ता है तथा उसके रस को पीने से स्त्रियां गर्भ धारण करती है । यदि तिलाकं तिक्ता ब्राह्मी वासा मताक जे स्वरसे पक्तं तुल्टां लवणं गर्भाया व द्दतौ सज्यं ॥१६॥ यदि तिल आक कुटकी अथवा पित पापड ब्राह्मी अरडूसा गिलोय को आक के स्वरस में मिलाकर बराबर नमक डालकर सेवन करने किया जाये तो ऋतुकाल में अवश्य ही गर्भ रह जाता है। आज्यं शिरीष पुष्पं स्वरसं क्षीरं च युग पदे च पिबेत माहिषश्च पयोथ वंध्या न व्याऽपामार्ग पुष्पा ।।१७॥ शिरस के फूल को इसके रस घी तथा धूध के साथ पियें अथवा चिरचिता के पुष्पों को भैंस के दूध के साथ पीयें तो बध्या के भी पुत्र होता है। तुष शिरिव पुट दग्धोऽब्जत पीत दला क्षीर संयुतं स्वरसं गोमूत्र निशा स्वरसाऽसत कुसुमं वा पिबेवंध्या ॥१८॥ कमल के तिनके और खरेटी को बहेड़ा और चित्रक की पुट देकर भस्म बनाकर उसको दूध और हल्दी के स्वरस के साथ पीएं अथवा वह स्त्री विजयसार के फूल को हल्दी के स्वरस और गौमूत्र के साथ पीये। न व्याहि केसर रसो गव्याऽज्य सहितं पिबेत अपत्य प्रार्थिनी नारी लीराऽहाराजातु वासरात् ॥१९॥ बिना पति की संतान की इच्छी करने वाली स्त्री को ऋतुकाल में नवीन नाग केसर के रस का गाय के धी के साथ पीवे और दूध का आहार लें। मयूराग्रंक निंवं वा पिबेत दग्धेन कल्कितं ऋतु स्नाता वधूः सद्यः सुतात्पत्ति समुत्सुका ॥ २०॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy