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S5I05505DISTRIST015 विधानुशासन 510050STOTHARIDIOS
श्री पर्णा फल चव्य पुत्रक मही कुष्माइनिपर्णिका ब्राह्मी दुर्दर पूर्विका सित वरांहां कोल वंध्यान्वितां पाठा लक्षणि केऽत्यऽनन्य सित गोदुग्धे पिष्टवा पिबेत
वंध्या पुत्र बती स्व भर्तुः सहिता पुत्रं लभेत धुवं ॥ ३३ ॥ बड़ी इलायची फल चव्य पुत्रक (दबना) मही (खंभारी) कुष्मांडीनी (कुम्हडा काशी फल ) ढाकवाही -दुर्दर (बहेडा) सित बराह (सफेद बाराही कंद) अंकोल काली मिरच मुगवन (सहदेई गंयार पाठा) पाठालता और लक्षणी को श्वेत गाय के दूध में पीसकर पीने से वंध्या स्त्री कभी पति संयोग से अवश्य ही निश्चय पूर्वक पुत्र प्राप्ति करती है।
पीत्वा ऋतोषामिदं दिवस चतुष्टयामुभातपि स्थिता
निर्वातात्मकेद्देशे भुंजी यांता मधुरमन्नं ॥३४॥ ऋतुकाल में इस औषधि को पीकर दोनों स्त्री पुरुष चार दिन तक ठहरे फिर वायु रहित स्थान में मधुर अन्न खावे।
स्नात्वा चतुर्थ दिवसे स्वभतु संपर्क माप्टा
निजवनिता पुत्रीं पुत्रं लभते वामे तर शया पार्थ संसुप्ता॥ ३५ ॥ चौथे दिन स्नान करके तथा पति के बगल में सोई हुई अपनी स्त्री से शय्या पर संपर्क करके पुत्र अथवा पुत्री को प्राप्त करें।
उत्पलस्य च कंदानि बहुमूला स्तथैवच फलानि पुत्र जीवस्य लाजानि च तथैव च
॥३६॥
मधुस्य च पुष्पानि सरसी रूह केशरं कसेरू करय कंदानि किंशुक स्य फलानिवा
॥ ३७॥
एतानि समभागानि चूर्णयित्वा भिषग्वरः मधु शर्करया टुक्तं तत् चूर्ण गुलिका कृतं
॥३८॥
त्रीऐयता न्यऽक्षता मात्राणी प्रातःकालेञ्यहं ततः ऋतुकाल दिने देट पुत्रं परम दुर्लभ
॥ ३९॥ 051015105251951015015/४०७ PISIRISIOSISTRI5015015