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________________ 959595952 विधानुशासन 9595959595 * गुप्तोच्चटो विदारी चूर्ण क्षीरेण शर्करोपेतं यः पिबति नरोनित्यं गच्छेत् सः स्त्री शतं सततं ॥ २० ॥ कोंच के बीज (उड़द की दाल) चिरमी के जड़ बिदारी कंद का चूर्ण को जो शक्कर मिलाकर दूध के साथ गीता है हर विल्य लगातार १०० लीयों के पास जा सकता है। यात्री फल रजो यात्री फल स्वरस भावितं घृत सिक्तं लिहन क्षीरं पिवेत तनु वृषायते ॥ २९ ॥ आंवले चूर्ण को आयले के रस की भावना देकर घी से चिकना करके चाटने और ऊपर से दूध पीने से बेल के समान पुष्ट हो जाता है। रजोविदारीकंद स्य तद्रसैनैव भावितं लीठं घृतेन गौदुग्धं पीत्वातु स्त्री भजेब्दहुः ॥ २२ ॥ बिदारी कंद के चूर्ण को उसी के रस में भावित करके घी के साथ चाटने और ऊपर से दूध पीने से बहुत सी स्त्रीयों के साथ भोग कर सकता है । सर्पिषा संयुतं लीढं यष्टी मधुकजं रजः क्षीरानुपान बढ़ाकुर्यादपि नपुंसकं ॥ २३ ॥ मुलेही के चूर्ण को घी के साथ मिलाकर चाटने से और ऊपर से दूध पीने से नपुसंक भी घोड़े के सामन पुष्ट हो जाता है । व्योष द्राक्षा सिता चूर्ण घृतैः कथित शीतलं युक्तं गव्यं पयः पतिं बल शुक्र वर्द्धनं ॥ २४ ॥ सोंठ मिरच पीपल मूत्राका और मिश्री के चूर्ण के साथ क्काय बनाकर और ठंडा करके घी और गाय के साथ पीने से बल और वीर्य बढ़ता है। के दूध उदकं शाल्मली मुद्राद्धाणितां गलितं घटे शोषितं सलिलं स्वादन केवलं वा वृषायते ॥ २५ ॥ संभल के कांटे के नीचे की लकड़ी की छाल को पानी से घिसकर कपड़े से छानकर घड़े में डालकर रखे उसका जल सूखने पर खाने से मनुष्य अत्यंत पुष्ट हो जाता है। PSPORTE: PA2505) 959625
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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