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________________ 9595259595951 विधानुशासन 9695995 मास द्वय प्रयोगेन निरंतर्य दिनेदिने समान रमते नारीमऽक्षीणचट को यथा || & || बकरे के कपूरे और तिलों की पिट्टी को घी के साथ मिलाकर रात्रि में अन्न सहित मिश्री या शक्कर को दूध में मिलाकर पीयें प्रतिदिन इस प्रयोग को दो मास तक करने से वह पुरुष बिना स्खलित हुए चटक (चिड़े) पक्षी की तरह स्त्री से रमण करता है। कपि कच्छोय मूल क्षीर पिष्टं च तं पिबेत अक्षयं जायते शुक्रं कामये स्त्री सहस्त्र कं पुरुष कोच की जड़ को दूध के साथ पीसकर पीवें तो उसका वीर्य अक्षय होकर वह हजार स्त्रियों 'इच्छा की करे । धात्री फलानां चूर्णतु वेक्षु रसेन भावितं शर्करा मधु संयुक्तं समभागं च कारयेत् ॥ ८ ॥ आवले के चूर्ण को गन्ने के रस में भावित करके उसमें बराबर शक्कर मिलाकर मधु पिलावे । ॥ ७ ॥ जीर्ण कायोऽपितं तं लिह्या क्षीरं पीत्वा ततो निशि कामयेत स्त्री सहस्रतुं कामाग्निस्तस्य वर्द्धते ॥ ९॥ वृद्ध पुरूष भी उसको चाटकर रात्री में दूध पीकर सहस्र स्त्रियों की इच्छा करता है तथा उसकी कामाग्नि बढ़ जाती है। अश्वगंधातला श्चैव मूलं च कपि कच्छजं बिदारी कंद संयुक्ता षष्टिकानां च तंदुला एतानि पयसा पिष्टवा घृतेन सहितं पिबेत दिनेदिने च तं भक्षेद्याति कामस्य दीपनं ॥ १० ॥ ॥ ११ ॥ अश्वगंध तिल कोंच की जड़ बिदारी कंद मुलेठी और साठी चावलों को समान भाग लेकर दूध के साथ पीयें तो इसको प्रतिदिन खाने से कामोद्दीपन होता है। बिदारी गोक्षुरं चैव पयसा सह भक्षयेत् जीर्ण कोयपि दातव्यं मंदाग्नि द्दीपन प्रद ॥ १२ ॥ बिदारी कंद और गोखरू के चूर्ण को दूध के साथ खाने से जीर्ण कायवाला पुरुष भी मंदाग्नि को नष्ट कर कामोद्दीपन को प्राप्त होता है। 959595259SOJNI E PS050525252525.
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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