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________________ SSIO1512155051255125 विद्यानुशासन VEDASIDISTRISTORIES श्वेतार्क क्षुद्रिणी श्वेतां श्वेताश्च गिरिकर्णिकां लक्ष्मणं बंप्य ककॉटिवाऽजा क्षीरेण पेषयेत् ॥२७॥ सफेद आक सफेद दूब छोटी कटेली सफेद कोयल बूटी लक्ष्मण और बांझ ककोड़े को समान भाग लेकर बकरी के दूध के साथ पिसवाकर। + शताऽभिमंत्रितं कृत्वा तस्य पानं प्रदापयेत् तेन सा लभते गर्भ ज्ञात्येवं च समाचरेत् ॥२८॥ फिर औषधि को एक को एक बार अमृत मंत्र से अभिमंत्रित करके स्त्री को पीने के लिए दें। मन में जान करके कि इससे इसको गर्भ की प्राप्ति होगी कार्य करे। इति स्त्री दोषाणि शुक्र क्षयेतु पुरुषे नागिर्भ न धार्यते पुरुषे शुक्र हीने तु उपायं यक्ष्यतेऽधुना ॥१॥ पुरुष का वीर्य क्षीण हो जाने पर स्त्रीयाँ गर्भ नहीं धारण कर सकती अत एक पुरूष के धातु क्षीणता दूर करने के उपाय का वर्णन किया जाता है। माक्षिकं स्वर्णमाक्षीकं लोह चूर्ण शिलाजितं पारदं स बिडंगानि पथ्याभाग समांशकं ॥ २ ॥ पतेन भावयित्वा च पात्रे कत्वा आयसे बिडाल पद मात्रंच भक्षयेत् स्थविरोपियः ॥३॥ तस्य व्याधि जरा मृत्यु वर्षएकेन हन्यते कामये स्त्री सहश्रतुं बहुशुक्रोबहु प्रजः ॥४॥ शहद और सोना मारवी शुद्ध और लोह भरम शिलाजीत पारद बायबिडग और हरड़े के समान भाग लेकर और इन सबको घृत में मिलाकर लोह पात्र में रखकर यदि वृद्ध पुरुष भी दो तोले की मात्रा में खावे तो उसको रोग वृद्धावस्था और अपमृत्यु एक वर्ष के अंदर अंदर नष्ट हो जाती है।उसको एक हजार स्त्रीयों की कामना होती है तथा उसको बहुत अधिक वीर्य होकर बहुत संतति होती है। वस्तांडं तिल पिष्टं च पतं नैव च पाटाटोत पिबेत्क्षीरं द्युतं रात्रौ शर्करामन्न मिश्रितं eeeeeeeg ?* ටනලලලසු
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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