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________________ 0505501501505 विद्यानुशासन 95IOSISTSIOSIO15015 ज झ कारो निर्विषं करोति विकल्पेन व्यभिचारो करोति ज झ कारो निर्विष करता है और विकल्प से व्यभिचार को भी करता है। यकारे आकष्टिं विकल्पेन व्यभिचार करोति । टकार:- वश्य व्यभिचारं करोति कार आकर्षण को किन्तु विकल्प से व्यभिचार को भी करता है । टकार वश्य और व्यभिचार को करता है। __णकारो व्यभिचारं करोति - तथकार : शांतिकं पौष्टिकं करोति एकार व्यभिचार करता है। तया शांति और पुष्टि करता है। दध कारों व्यभिचारं करोति नकारो व्यभिचारं करोति द ध व्यभिचार करता है, न व्यभिचार करता है। प फ कारः शांतिकं पौष्टिकं करोति ब भकारः स्तोभ स्तंभनं करोति प और फ शांतिक और पौष्टिक करता है। ब म स्तोभ और स्तंभन करता है | मकार :सर्वकर्म विकल्पेन सर्व सिद्धि करोति। यकार:- सर्वभिचार कर्म विकल्पेन आकृष्टिं करोति।। लकारः स्तंभन मोहन वशीकरणं विकल्पेन निर्विों करणं वकारो निर्विषं करोति॥ . म सब कर्मो को और विकल्प से सब सिद्धि को करता है। य सब व्यभिचार के कर्म और विकल्प से आकर्षण करता है । ल स्तंभन वशीकरण मोहन तथा विकल्प से निर्विष करता है व निर्विष करता है। शकार : शांति पौष्टिक वश्या कृष्टिं षकारः स्तंभन मोहनं सकारो वाचा सिद्धिं करोति श शांतिक पौष्टिक वश्य और आकर्षण करता है ष स्तंभन और मोहन करता है स वाणी को सिद्ध करता है। हकारः सर्वकर्म करोति क्षकार: सर्वयोगाक्षरं मंत्रिणा अक्षरं प्रति प्रयत्न सर्व कर्तव्यं । ह सब कार्य करता है। क्ष सब योगों को करने वाला अक्षर है। मंत्री को अक्षर के प्रति सभी प्रयत्न करना चाहिए। इति तृतीय प्रकरणं SADRISTOTRIOTICIPIERRISTRA ३३ PISTORSCISSISTICS25505
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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