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________________ S5095015015015105 विधायुशासन 950150151215181510 इस ऋषि मंडल स्तोत्र का जो ध्यान करता है यह संसार का प्यारा होता है। उसका महान कल्याण होता है और संसार से मुक्त होकर अंत में मोदर में जाता है। यह स्तोत्र महान स्तोत्र है सब स्तोत्रों से सर्वश्रेष्ठ है। इसको पढ़ने से याद करने से व इसके मंत्र का जाप करने से प्राणी अविनश्यर पद को पाता है। अथा अस्य लेखन प्रकारः कांचनीयेथवा रोप्टो कांस्टो याभाजने वरे मध्य लेरख्यासकारांतो द्विगुणे यांते वितः ॥ ८२॥ तूर्यस्वर मनोहरी विंदु राजाधमस्तकः जिनेशास्तत्प्रभा लेख्या यथा स्थानं तदंतरेयुग्मं ॥८३ ॥ यंत्र सोने चांदी अथया कांसे या तांबे का गोल बनवाना चाहिये उसके बीच में सकार के अंत का अक्षर अर्यात् ह यर्ण में यांत अर्थात् य के आगे क अक्षर रकार मिला हुआ दुहरा लिखना चाहिये। उसमें चौथा स्वर इकार लगाना उसके मस्तक पर आधे चन्द्रमा का आकार चिन्ह को बिन्दु ऊपर रखकर बनाना जैसे ही उस ही में चौबीस तीर्थंकरों का नाम लिस्पना चाहिये। चंद्रप्रम पुष्पदंती मुनिसुद्यत नेमिकी सुपायपाश्यांपप्रभवासुपूजा तथा कमात् ॥ कलाया तदुपरिष्टा दिकारे मूर्यि च स्फुट लेख्याः शेषा जिनागर्भ नमो द्युताः सुपीतभाः युग्म || चंद्रप्रभ पुष्पदंताभ्यां नमः एसा हीं की अर्धचन्द्रमा की कला में लिखना मुनि सुव्रत नमिभ्यां नमः ऐसा उस काला के उपर बिन्दुस्थान में लिखे सु पार्श्वभ्यां नमः कहे हुवे ही वर्ण के ईकार में लिखे। उस पूर्व कथित वर्ण (ही) के मस्सक में पद्मप्रभयासु पूज्या भ्यां नमः ऐसा लिखें और शेष १६ तीर्थंकरों को अर्यात् "ऋषभाजित संभवाभिनंदन सुमति शीतल श्रेयांसो विमलांनंत धर्म शांति कुम्थु अर मल्लि नमि वर्धमानेभ्यो नमः" इसतरह उसके बीच भाग में लिखना चाहिये यह सब हीं के बीच भाग में सोने के समान पीले रंग के प्रभावाले हैं। ततश्च वलयः कार्यस्तद्वाो कोटाऽष्टकं तत्रेतिलेख्यं विवुधैश्चारु लक्षण लक्षितैः ॥ CASICISISTRIOTICISCITH ३७१ P5125TOTSITICISIONSIOTEN
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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