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________________ 252525252595_fangenaa_952525252525 विधानुशासन व्याधि, विष, दुष्टग्रह विनाशक, महादिव्यशक्ति, शालिकर वश्याकृष्टि प्रसंगप्रिय विकृतरूप, रौद्रकान्ति, सिद्धिकर अनन्त योजन प्रभाशक्ति, सर्वव्यापि, सर्वसाधक व्यभिचार कर्मप्रिय, सर्वगर्भकर्तारं, सर्वलोक प्रिय नपुं. सर्वहोमप्रिय, रौद्रशक्ति, परविद्याछेदक, आत्मकर्मसाधक, स्तंभनादिक कर्मकर नपुं. स्तम्भन, मोहनकारक, सर्वजीव धारक, वश्याकर्षण, निर्विष, शान्तिकारक श्याकर्षण, शान्तिक, पौष्टिक कर्ता स्तम्भन, मोहनकारी पुं. सर्वकर्म कर्ता वश्याकर्षण कर्ता पुं. सर्वव्यापि, सर्वकर्मकर्ता, सर्वमंत्राग्रणी मनः स्थायी विजय, चिन्तित मनोरथ साधक, त्रिकाल, त्रिलोक दर्शक सर्वरक्षाकर, सर्वप्रिय, सर्वकाल ज्ञान महीश्वर, सकल मंत्रप्रिय नपुं. पुं. द्वितीय वर्ग श्वेताक्षरं धनार्थ :- पीताक्षरमाकृष्टि स्तंभन मोहनाथ हरिताक्षरं कृष्णांक्षरं च व्यभिचार करें तत स्तत त्कर्म करोति ॥ श्वेत अक्षय धन के लिए, पीत अक्षर आकर्षण स्तंभन और मोहन के लिए हरा और काला अक्षर व्यभिचार करने वाला होता है। यह अपने अपने कार्यो को करते हैं। ३८. फकार ३९. बकार ४०. भकार ४१. मकार ४२. यकार ४३. रकार ४४. लकार ४५. वकार ४६. शकार ४७. चकार ४८. सकार ४९. हकार ५०. क्षकार इगुंल उदयार्क अरूपी आदित्य पीत श्वेत रक्त नील, मतांतरसे पीत श्वेत पीत ई ऊ वरुणं स्त्रीऋ ऋ लृ ङ ण न म पदा ए ऐ उ ऊ विकल्पेन स्त्री नाम करोति जयमा विल्पेनषंदा: शेषाक्षराणि पुमांसः 95961969599597 ३१ 959695969
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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