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SP59505551 विद्यामुशासन 96959SPSS
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु दष्टिणः
॥ ४५ ॥
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को दष्ट्रिण जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सताये ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्टा या विभा तयाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु रेलपा
॥४६॥
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को रेलपा जाति के जांव पीड़ा नहीं दे मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु पक्षिण
॥ ४७ ॥
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को पक्षिण, जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सर्वागं मां मा हिंस्तु भजका
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देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को भजका जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सताये ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंस्तु भिका
।। ४९ ।।
देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को जूभिका जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तद्याच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु तोयदा
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देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के
सब अंगों को तोयदा जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सताये ।
कथ
50/6050३६३ P551
ひらひらぐら