________________
SASTRISTRISTRI5015015 विधानुशासन ISTRISTOT51015IOTSIOSI
देवदेवस्टा यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तयाच्छादित सांगं मां मा हिंसतु कीनसा
॥४१॥ देवों के देय श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को कीनसा जाति के जीद पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य टाच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तथाच्छादित सर्वागं मां मा हिंसतु व्यंतरा
॥४०॥ देयों के देय श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को व्यंतरा जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे |
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्व या विभा तयाच्छादित सांगं मां मा हिंसतु तेग्रहाः
॥४१॥ देवों के देय श्री जिनेन्द्र भगयान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को तेग्रह जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे |
देवदेवस्या यच्चकं तस्य चक्रस्य या विभा तटाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु तस्करा
॥४२॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को तस्करा जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सताये ।
देवदेवस्य यच्चक्रं तस्य चक्रस्य या विभा तटाच्छादित सर्वांगं मां मा हिंसतु वन्हय
॥४३॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को वन्हय जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सताये ।
॥४४॥
देवदेवस्य याच्चकं तस्य चक्रस्य या विभा
तयाच्छादित सर्वागं मां मा हिंसतु श्रगिणः देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को दष्ट्रिणः जाति के जीय पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे | CISIOTICISTOISIOSSICATIO35 ३६२ PISTIC5TOISISTICISCISISTER