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RSSURESHISIS विष्णशासन HSCISCECISCISROIN
देवदेवस्य रायकं तस्या चक्रम्य या विभा
तयाच्छादित सर्वाग मां मा हिंसतु सिंहका देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को सिंहका जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य यच्चळं तस्य धकस्य या विभा तथाच्छादित सर्वागं मां मा हिंसतु शूकरा
॥५२॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी पक्र की प्रभा से कके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को शूकर जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे |
देवदेवस्थ यच्चकं तम्य धकस्य या विभा
तयाच्छादित मागं मां मा हिंसतु चित्रका देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से पके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को चित्रका जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सताये ।
देवदेवम्व यव्य तस्य चक्रम्य या विभा तयाछादित सवांगं मां मा हिंसतु हस्तिन
॥५४॥ देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थंकरों के समूह रूपी चक्र की प्रभा से ढके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को हस्तिन जाति के जीय पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य यच तस्य चक्रम्या या विभा
तवाच्छादित सांग मां मा हिंमत भूमिपा देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकरों के समूह लपी चक्र की प्रभा से ढ़के हुए मेरे शरीर के सब अंगों को भूमिया जाति के जीव पीड़ा नहीं दें मुझे न सतावे ।
देवदेवस्य रायक तस्य चक्रस्य या विभा
तथाच्छादित सयागं मां मा हिंसतु शत्रवः देवों के देव श्री जिनेन्द्र भगवान तीर्थकों के समूह रूपी धन की प्रभा से पके हुए मेरे शरीर के सब अंगों को शश्व जाति के जीव पीड़ा नहीं दे मुझे न सतावे । CRICSCISIOSCS0505 ३६४PISCIRCISCISCSCRICIAN