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CARTOISISTERSIT51075 विद्यानुशासन VDIO505125TSTRICISE
लोकांतेऽत्र सुकीर्तिताः स्फुट गुण वाताः शुचि स्फूर्तयः सं शष्टाद्रव वार्द्धयो मुनि वरा नन्दन्तु सप्तद्रयः ॥१३॥ सं स्पर्श मात्र विनिवारित सर्व दोषां सौभाग्य भाग्यजय कार्मण दिव्या भूषाममुक्त्य नागरिमोसन मुस्ता पोषांम भक्त या भजामि निज मूनि प्रसिद्ध शेषाम्
॥१४॥
युष्मानागम भार रूप महतो भक्त्या समाराध्यन सम्टाक्त्वं च त्रिधो पचार विधिना तत्र प्रमादोऽस्ति च
॥१५॥
तत् सोढव्य (मुद्भक्त) (मुषोद्भवत्सल) मुखोत्थ वत्सल तया देवैरलं (रहिं वो गुणान् ध्यायन याम्यधुना गृहं स्वम चिराद् पुनदर्शनं । इत्थं गणाधिपति चक्र महाभिषेकं पूजां पुरानियम वा नितियः करोति ॥
सत्सवर्ग (सर्व स्वर्ग) मनुभूषतैवैनतारी) सौरव्य मनुभय ततोऽवतीर्य प्राप्रोत्यिनन्त सुरखमक्षय मोक्ष लक्ष्म्याः
॥
इति श्री मदिमडि भट्टोपाध्याय प्रणिते गणधर वलय
समाराधना कल्पेयंत्राभिषेक पूजा विधान समाप्तं ।। मध्ये गुरूनष्ट दलेषु देयं गणेन्द्र षट्क क्रमेशो वहिश्च अर्हकला षोडश पत्र पा वर्गान जयाटांश्च दिगंतरेषु लिस्वेत् त्रिमूर्तेरुदरेतु जांततन्मूल मंत्रेण सदाऽचितं च वूते स्व कार्य कुरुते च कर्म यथेप्सितं मोक्ष सुरवं विद्यते।।
एक अष्टदल कमल के बीच में गुरूओं को देकर, एक एक दल में क्रमशः छह छह गणधर वलय मंत्र लिखें कर्णिका में अर्हत बीज और सोलह कलाओं को लिखकर पत्रों के बाहर वर्गों और उनसे भी बाहर की दिशाओं में जया आदि देव्यों को लिखें। इस यंत्र को त्रिमूर्ति ह्रीं के पेट में लिखकर जो पुरूष इसका प्रतिदिन मूलमंत्र से पूजन करता है उसके लिए यह यंत्र अपने कार्य को बतलाता है। हे इच्छानुसार कार्य को करता है और यहां तक कि मोदा के सुख को भी देता है।
इति महद्गणधर वलय चक्र क्रम
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