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________________ esP5250 विधानुशासन ॐ ह्रीं असि आउसा ह्रीं झीं झौं नमः ॐ ह्रीं है झ झ णमो अरहंताणं सिद्धाणं आयरियाणं उवज्झायाणं साहूणं स्वाहा ॥ यह दोनों गणधर वलय मंत्र है। ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्र: आयं परम गुरू पदाद्यक्षरं होम युक्तं वेदादि कर्णिकायां जिन भुवन पत्तिं पत्रं मध्ये लिरयदौ हां जैन स्तोत्र होमं तदनुकमलजं ह्रीं च सिद्ध स्तुतिं च होमांत ततदन्येष्वपि गुरु पद युक् हूं तथा ह्रौं ततोह : ॐ ह्रीं पूर्व स होमं ग वर्गमुमाचार (मसमाचार) मंतचं च वाह्ये ॐ ह्रीं अहं नमः प्राग्गणधर वलयेनाऽवृतं तत्व वेष्टयं को रुद्धं वारि पृथ्वी पुर वृत मनिशं पूजयेन्मोक्षहेतो (गामी) माला मंत्रेण चांतर्गति पदसहितै झौं नमोह जिनेन्द्रै ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः असि आउसा झौं झौं अर्ह नमः स्वाहा इति गणधर वलय मंत्र कर्णिका में आद्य (ॐ) ह्रां ह्रां हूं ह्रीं ह्रः परम गुरु पदाक्षर (असि आउसा) और होम (स्वाहा ) को लिखकर उसके चारों तरफ वेदादि (ॐ) और जिनभवन पति ( ही ) को लिखकर इसके पश्चात आठों पत्रों में क्रम से ॐ ह्रां जैन स्तोत्र (णमो अरहंताणं) होम (स्वाहा ) ॐ ह्रीं सिद्ध स्तुति (णमो सिद्धाणं) होम (स्वाहा ) ॐ हूं आयरियाणं स्वाहा ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ॐ ह्रः णमो लोए सव्व साहूणं स्वाहा ॐ ह्रीं द्दग सम्यग्दर्शणाय स्वाहा ॐ ह्रीं अवगम (सम्यक् ज्ञानाय स्वाहा ) ॐ ह्रीं सदाचार (सम्यञ्चारित्राय स्वाहा लिखे इसके पश्चात ॐ ह्रीं अर्ह नमः को लिखकर उसके बाहर गणधर वलय मंत्र लिखे। फिर तत्व ह्रीं वेष्टित करके क्रों से निरोध कर सबसे बाहर जल मंडल और पृथ्वी मंडल बनायें। जो पुरुष इस यंत्र का ॐ ह्रीं हैं नमः स्वाहा सहित माला मंत्र से पूजन करता है। वहाँ शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त करता है। ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः असि आउसा झीं ह्रीं अहं नमः स्वाहा । やずやらです VANGREY PA2505 BPS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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