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________________ STORISTORICTERISES विधानुशासन PARASIRIDICIRCISIONS सद्वारि गन्ध सदक प्रसवादि सिद्धं सिद्धार्थ कादि वर माल वस्तु शस्तं सौता मात्र लिहिलयन मध्य मुद्धारयामि गणवन्द पदाम्बुजागे ॥२६॥ ॐ ह्रीं अर्ह णमो चतुर्विशति दल पूजायै पूर्णा निर्यपामिति स्वाहा। ऋद्धाया बद्धः समद्धां स्तपसि परिणतान विकिय ऋद्धि प्रसिद्धान जलायै रामयज्यान् रस वल सहितान विश्रुताक्षीण बुद्धीन ॥२७॥ सर्वान् एतान् महर्षीनऽधिक गुण निधीन वर्षमानानुभावान प्रत्येकं पूजयित्वा प्रसव विरचित्ः प्रालिवाऽभि वन्दे ।। २८ ! पुष्पांजलि क्षिपेत् कोष्टावधि प्रमुख बोध महासमुद्र पारं गतान् नमयितु च सतः समान श्रेणी दया श्रयण योग्य समाधि निष्ठान बुद्धि ऋद्धि सिद्धि सहितास्तु महे महषींन् ॥१॥ दीप्तोग्र तप्त महदादि तपैः प्रभेदैः सम्यक प्रभावित सु निर्मल मूर्तीन् काटोन सार्द्धमऽति कर्शित कम शक्ति स्तान् ताप सद् ऋद्धि पतीन स्तु,महे महषींन् ॥२॥ तोयाद्युपायदाद द्भुत शक्ति भेद भिन्नाष्ट्या प्रथित चारण योगि वान् नानाणिमादि निपुणांश्च तपः प्रभायां स्तान् विकि य ऋद्धि सहितान् स्तु मह' महर्षीन् ॥३॥ ताप अटौरऽतितरामिह तप्यमाने ष्वेतेषु जीवनिवहेषु दया भावात् उद्भावितैः पृथुगुणैरुपकुर्वतोऽन्यां स्तानी षध ऋद्धि पतीन् स्तु महे महर्षीन् 52150152750751005055 ३४४ 35107510051251235TRICIOUSI ॥४॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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